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हाथों से कार्य निकलता है । फिर कार्य निर्विघ्न व समय पर पूरा हो जाना, यह बहुत बड़ी उपलब्धि होती है लेकिन गुरू आशीर्वाद से सब कार्य आसान हो जाते हैं जिनको दृढ़ श्रद्धान होता है । पूज्य आचार्यो व गणधराचार्य महाराज के शुभाशीर्वाद पर दृढ़ श्रद्धान करके हमने ग्रंथ प्रकाशन का कार्य प्रारम्भ करवाया भौर अनेकों बांधाएं पाने के बावजूद भी हमने सदैव की भांति इस ग्रंथ का प्रकाशन कार्य पूर्ण करवाने में सफलता प्राप्त की है।
ग्रंथ, प्रकाशन के कार्यों को बहुत ही सावधानी पूर्वक देखा गया है फिर भी इतने विशाल कार्य में त्रुटियों का रहना स्वाभाविक है। मेरा स्वयं का अल्प ज्ञान है। मैं तो मात्र परम पूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुथुसागरजी महाराज की आज्ञा को शिरोधार्य करके यह कार्य कर रहा हूँ। अतः साधु वर्ग विद्वत जन व अन्य पाठकों से निवेदन है कि त्रुटियों के लिये मुझे क्षमा प्रदान करें।
परम पूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुथु सागरजी महाराज के विशाल संघ का वर्ष १६६१ का वर्षायोग हरियाणा प्रान्त के रोहतक नगर में होने जा रहा है । और आज दिनांक २२-७-६१ को एलक कनक कुमार नन्दिजी महाराज व ब्रह्मचारी श्री संजय कुमार जी की मुनि दीक्षा भव्य समारोह के साथ गणधराचार्य महाराज द्वारा प्रदान की जा रही है । ऐसे मांगलिक शुभावसर पर गणधराचार्य महाराज के शुभाशीर्वाद से हमें भी आकर कार्यक्रम में शामिल होने का सौभाग्य प्राप्त हो सका हैं और इसी शुभावसर पर ग्रंथमाला द्वारा प्रकाशित व्रत कथा कोष ग्रंथ की प्रथम प्रति गणधराचार्य महाराज के कर कमलों में भेंट कर प्रार्थना करता हूं कि आप इस ग्रंथ का विमोचन कर हमें लाभान्वित करने की कृपा करें।
गुरु उपासक संगीताचार्य, प्रकाशन संयोजक शान्ति कुमार गंगवाल (बी. कॉम)
जयपुर (राज.)