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तथा विषय में परिपूर्ण होने से महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुए है और सभी पाठकों ने स्वाध्याय करके लाभ प्राप्त किया है।
इस प्रकार गणधराचार्य कुथुसागरजी महाराज के गुणों के बारे में जितना लिखा जावें उतना ही कम है । मात्र मैं तो इतना ही समझता हूँ कि वर्तमान युग में परम पूज्य गणधराचार्य महाराज आर्ष परम्परा के दृढ़ स्तम्भ होने के साथ २ त्याग तपस्या को साक्षात मूत्ति है।
ग्रंथ में प्रकाशनार्थ, प्रस्तावना आदरणीय प्रोफेसर अक्षय कुमारजी जैन इन्दौर वालों ने लिखने की जो कृपा की है इसके लिये हम ग्रंथमाला समिति की ओर से बहुत २ धन्यवाद देते हैं कि भविष्य में भी आपका सहयोग तथा मार्ग दर्शन इस ग्रंथमाला समिति की सदैव प्राप्त होता रहेगा।
धर्मनिष्ठ गुरू भक्त बहिन डॉक्टर नीलमजी जैन ने भी ग्रंथ में प्रकाशनार्थ, "ग्रथ के बारे में मेरे विचार" लेख भिजवाकर हमें सहयोग प्रदान किया है उनका भी हम ग्रंथमाला की ओर से आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद देते हैं।
ग्रंथ प्रकाशन में प्रकाशन खर्चों के भुगतान हेतु आर्थिक सहयोग की आवश्यकता होती है ग्रंथमाला समिति के पास स्थायी जमा राशि नहीं है फिर भी प्रकाशन कार्य निरन्तर दातारों से समय २ पर प्राप्त आर्थिक सहयोग के आधार से हम करा सके हैं। इसी संदर्भ में पूज्य श्री १०५ क्षुल्लक भद्रबाहूजी महाराज (बेलगाँव) वालों का विशेष आभार प्रकट करते हैं कि जिन्होंने पारा (बिहार) में आयोजित पंचकल्याणक महोत्सव के शुभावसर पर ग्रंथमाला समिति को पूर्व ग्रंथों के प्रकाशन खर्चों में सहयोग हेतु इक्यावन हजार रुपयों का आर्थिक सहयोग प्रदान किया था। क्षुल्लक महाराज के चरणों में इच्छामि अपित करते हुए हम आशा प्रकट करते हैं कि भविष्य में भी महत्त्वपूर्ण ग्रंथों के प्रकाशन कार्य में आपका सहयोग प्राप्त हो सकेगा।
प्रस्तुत ग्रंथ के प्रकाशन खर्चों के भुगतान हेतु जिन २ दातारोने हमें सहयोग प्रदान किया है उन सभी का हम ग्रंथमाला समिति की मौर से आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद देते हैं।
___ ग्रंथमाला समिति के प्रकाशन कार्यों में सभी सहयोगी कार्यकर्ताओं का बहुत २ अाभारो हूँ कि आप सभी ने समय पर कार्य पूरा करवाने में सहयोग प्रदान किया है। मेरे सुपुत्र श्री प्रदीप कुमार गंगवाल ने परम पूज्य श्री १०८ गणघराचार्य कुथु सागरजी महाराज के शुभाशीर्वाद से इस कार्य में कठिन परिश्रम किया है। अन्य सहयोगीगण सर्व श्री मोतोलालजो हाड़ा, श्री लिखमो चन्द जी बख्शी, श्री हीरालालजी सेठो, श्री लल्लू लाल जी जैन (गोधा), श्री रवि कुमार गंगवाल, जैन संगीत कोकिला रानि बहिन श्रीमती कनक प्रभा जी हाड़ा, श्रीमती मेम देवी गंगवाल का समय २ पर सहयोग मिलता रहा है । अतः सभी को बहुत २ धन्यवाद देते हैं।
__ग्रंथ प्रकाशन का कार्य बहुत, ही कठिन कार्य होता है कितनी ही बाधाएं इसमें आती है ये तो करने वाले व कराने वाले ही भलि भांति समझ सकते हैं। क्योंकि कई