SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 354
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्रत कथा कोष [ २६५ वह बालक शुक्ल पक्ष के समान बड़ा होने लगा और सब विद्याओं में निपुण हो गया । एक दिन साकार राजा वन में एक मुनि के पास गया वंदना कर उनके पास बैठ गया । धर्मोपदेश सुनने के बाद उन्होंने ( राजा ने ) पूछा महाराज देशान्तर में जाने वाला हूं वहां पर मुझे यश मिलेगा कि नहीं। तब महाराज ने कहा है भव्य नरोत्तम तुझे यश मिलेगा । पर वापिस आने पर तेरे निमित्त से कुल पर कलंक लगने की एक कृति तुझ से होगी । यह सुन उसे बहुत ही ग्राश्चर्य हुआ । फिर वह नमोस्तु कर घर आया। फिर वह शत्रु को जीतने के लिए देशान्तर में गया । वीरता से लड़ने से उसे यश मिला वह उसे जीतकर घर आरहा था कि रास्ते में एक पर्वत के नीचे एक गांव मिला वहां से आरहा था तब रास्ते में एक जगह भ्रमरों का समूह मिला यह देख राजा को आश्चर्य हुआ इसलिए उसने प्रधान को पूछा, तब वह पास में जाकर देखने लगा उसकी थूक देखकर वह बोला कि यहीं पास में कहीं पद्म रानी होनी चाहिए इसलिए यहां भ्रमर एकत्रित हुए है । यह सुन राजा को उसकी अभिलाषा बढ़ने लगी और उसने मन्त्रि से कहा कि तुम जाकर इसकी खबर लाओ कि वह कहां है और कैसे प्राप्त होगी । यह सुन बह मन्त्री वेराड गांव की ओर जाने लगा । उसने पद्मनी को ढूंढ निकाला र उसके पिता को सब बात बताकर वह उसको राजा के पास ले आया । और सब बात बता दी । तब उस साकार राजा ने उस भील राजा से कहा कि मैं तुम्हारी कन्या से शादी करना चाहता हूँ | तब उस राजा ने कहा स्वामिन प्राप उच्च कुलीन हैं मैं तो भीलों का राजा नीच कुलीन हूँ । श्रेष्ठ कुल के राजा को ऐसा कार्य करना उचित नहीं है । इस प्रकार बहुत समझाया पर वह राजा नहीं माना । वह उससे जिद करने लगा तब साकार राजा को उसने कहा यदि आप जिद करते हो तो एक बात आपको माननी होगी वह यह है कि इसके पेट से जो पुत्र होगा, वही आपके बाद उत्तराधिकारी होगा । साकार राजा ने वह कबूल किया ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy