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व्रत कथा कोष
तब महाराज ने कहा अब तुम्हें सम्यक्त्व चूडामणि व भाग्यशाली पुत्र होगा । वह स्वतंत्र राज्य करेगा । इसलिये अब तुम जिनदत्तराय व्रत का पालन करो । उसकी विधि इस प्रकार है वह तुम सुनो ।
वन विधि :- किसी भी महिने के शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार को एकाशन करे । शुक्रवार को शुद्ध कपड़े पहनकर अष्टद्रव्य लेकर मन्दिर जाये । दर्शन आदि करने के बाद वेदी पर श्री सुपार्श्वनाथ तीर्थंकर को प्रतिमा, नंदिविजय काली यक्ष यक्षी सहित स्थापित करे । उस पर पंचामृत अभिषेक करे । पाटे पर सात स्वस्तिक निकालकर उस पर पान रखे व अष्टद्रव्य भी रखे । वृषभनाथ से सुपार्श्वनाथ तक अष्टक स्तोत्र जयमाला आदि बोलते हुये अष्टद्रव्य से पूजा करे । श्रुत व गुरु की पूजा करे । क्षक्षी ब्रह्मदेव की अर्चना करे ।
जापः- ॐ ह्रीं श्रीं श्री सुपार्श्वनाथाय नंदिविजयकाली यक्षयक्षी सहिताय नमः स्वाहा ।
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इस मन्त्र का १०८ बार जाप करे णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप करे | जिन सहस्रनाम स्तोत्र बोलकर सुपार्श्वनाथ चरित्र व यह कथा पढ़ े । प्रारती करे । उस दिन उपवास करके धर्मध्यान पूर्वक काल बितावे । दूसरे दिन पूजा व दान करके पारणा करे ।
इस प्रकार सात शुक्रवार पूर्ण होने पर उद्यापन करे । उस समय सुपार्श्व विधान करके महाभिषेक करे । चार प्रकार का दान देवे । जो भव्यजन इस प्रकार व्रत करके उद्यापन करेंगे उनको इहलोक और परलोक दोनों में सुख मिलेगा, अंत में मोक्ष भी मिलेगा यह इस कथा का प्रभाव है ।
यह सब महाराज के मुख से श्रियादेवी व समस्त लोगों ने सुना उन सब को खुशी हुई सब ने यह व्रत ग्रहण किया फिर वह भक्ति से वन्दना कर घर आये ।
घर आकर राजा व रानी ने यह व्रत विधिपूर्वक किया । श्रियादेवी को गर्भ रहा और उसको पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई उसका नाम जिनदत्तराय रखा ।