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________________ व्रत कथा कोष [ २६३ प्रकार प्रायिका माताजी को भी दान देवे । आठ दंपति जोड़ों को भोजन कराकर वस्त्र अलंकारादि से शोभित करे याने दान देवे, गृहस्थाचार्य को भी खूब दान देवे । कथा इसकी कथा में यशोधर चरित्र पढ़े। मारिदत्त राजा ने इस व्रत को पालन किया था, अंत में दीक्षा लेकर स्वर्ग में गया । अथ जियदत्तराय अथवा सर्वकामितप्रद व्रत कथा इस जम्बूद्वीप में भरत क्षेत्र है उसमें प्रार्यखण्ड है उसमें कुभल कर्नाटक नामक देश है, उसमें करवीर नामक एक बड़ा रमणीय नगर है, वहां पर राजदित्य नामक एक राजा राज्य करता था। उसके शीलवती गुणवतो व सुशील ऐसी पट्ट स्त्री थी । उसको गुणवंत नामक एक बड़ा भाग्यशाली पुत्र था, इसके अलावा पुरोहित राज्य श्रेष्ठी, सेनापति आदि थे। एक दिन उनके उद्यान के बाहर श्री माणिक्यनन्दि नामक महामुनि बिहार करते हुये आये । यह शुभ समाचार सुनते ही राजा वंदना के लिये प्राया । वंदना प्रदक्षिणा आदि करके वह राजा धर्मोपदेश सुनने के लिये बैठा । धर्मोपदेश सुनने के बाद राजा ने नम्र प्रार्थना करी, कि हे मुनिश्वर, हे दीनदयाल, आप जिनदत्तराय की कथा कहे । तब महाराज ने वह कथा सुनाना प्रारम्भ किया। उत्तर में मधुर एक सुन्दर पट्ट है वहां साकार नाम से बड़ा शूर व नीतिमान् राजा राज्य करता है । उसकी श्रीयालदेवी नामक पट्टरानी है । उसको ३० कन्याए थीं । परन्तु उसको लड़का नहीं था। इसके आलावा पुरोहित, मन्त्री, राज श्रेोष्ठि, सेनापति प्रादि सब थे । एक दिन उस नगर के मन्दिर में सिद्धान्तकीति नामक दिगंबर महामुनि पाये थे । यह बात राजा को मालुम होते ही परिवार सहित उनके दर्शन को गया । प्रदक्षिणा, बंदना आदि करने के बाद सिद्धान्त कीति महाराज के पास आकर उनकी पूजा वन्दना-प्रादि किया। फिर महाराज के मुख से तत्त्वोपदेश सुनकर श्रीयाल रानी अपने दोनों जोड़कर बड़े विनय से महाराज से बोली हे ज्ञानसागर भवसिंधुतारक मुनिवर्य मुझे अब पुत्र रत्न होगा कि नहीं यह पाप कृपा करके कहो।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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