SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 351
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६२ ] व्रत कथा कोष सब लोगों की सहायता से अच्छी तरह से व्रत का पालन किया, और व्रत का उद्यापन किया, महान पुण्य संचय करने वाली निर्नामिका अंत में समाधि करके स्त्रीलिंग का छेदन करती हुई, स्वर्ग में जाकर देव हुई, और वहां से चयकर वही श्रेयांस राजकुमार हुआ, और आदिनाथ तीर्थंकर को प्रथम पाहार दान दिया। फिर उसने बहुत समय तक राजऐश्वर्य भोगकर आदिनाथ तीर्थंकर के समवशरण में जाकर दीक्षा ग्रहण किया और कर्म काटकर मोक्ष को गये, इस प्रकार इस व्रत का फल है। जीवदया अष्टमी व्रत कथा आश्विन शुक्ला सप्तमी के दिन स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहिन कर अभिषेक पूजा का सामान हाथ में लेकर जिनमन्दिर जी में जावे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर ईर्यापथ शुद्धि करे, भगवान को अष्टांग नमस्कार करे, अभिषेक थाली में मुनिसुव्रत तीर्थंकर वरुणयक्ष बहुरुपिरिण यक्षि सहित प्रतिमा स्थापन कर पंचामृताभिषेक करे, मंडपवेदी को शृगारित करके वेदि पर पांचवों से मांडला मांडे, अष्ट दलाकार, पाठो दिशाओं में आठ मंगलकलश रखे, मध्य में भी एक मंगलकलश सजाकर रखे, उस कलश पर एक थाली में आठ पान लगाकर ऊपर अर्घ्य रखे, नित्य पूजा करे, जीवदया अष्टमी व्रत विधान करे । ॐ ह्रीं अहं श्रीं क्लीं ऐं अहँ मुनिसुव्रत तीर्थंकराय, वरूणयक्ष, बहुरूपिणि यक्षि सहिताय नमः स्वाहा । इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, श्रुत व गणधर की पूजा करे, यक्षयक्षिणी व क्षेत्रपाल की भी अर्चना करे । णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे । व्रत कथा पढ़े । एक महाअर्घ्य थाली में रखकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे । मंगल आरती उतारे। उस दिन ब्रह्मचर्य पूर्वक रहे । उपवास करे। रात्रि जागरण करे। दूसरे दिन जिनपूजा पंचपकवानों से करे । चतुर्विध संघ को आहार दानादिक देकर स्वयं पारणा करे । इस प्रकार इस व्रत को आठ वर्ष तक करे । अंत में उद्यापन करे, एक नवीन मुनिसुव्रत तीर्थंकर भगवान की प्रतिमा यक्षयक्षिणी सहित लाकर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा करे। आठ मुनिजनों को आहारादि देवे । उसी
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy