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________________ व्रत कथा कोष [ २६१ भगवान की मंगवाकर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा कराये चतुर्विध संघ को चार प्रकार का दान देवे, जिन मंदिर में छत्र, चामर आदि उपकरण देवे, इस प्रकार व्रत का विधान है। कथा धातकी खण्ड के पूर्व मेरू पश्चिम भाग में गंधिल नाम का एक बहुत बड़ा देश है । उस देश में पाटली नाम का एक मनोहर नगर है । वहां पहले नागदत्त नाम का एक सद्गुणी धर्मनिष्ठ सेठ रहता था। उस सेठ की धर्मपत्नी का नाम सुदत्ता था। उस सेठ के नंदी, नंदीमित्र, नंदीषण, वरसेन, जयसेन, ये पांच पुत्र थे और मदनश्री, पद्मश्री व निर्नामिका, ऐसी तीन कन्या थी । अन्त की निर्नामिका का अशुभ योग में जन्म होने से पैदा होते ही माता पिता मर गये । इसलिए भाई बहिन सब लोग उसका अनादर करने लगे । अनाथ रूप में दुःखी होकर इधर उधर फिरने लगी। एक दिन अंबर तिलक पर्वत पर महाअवधिज्ञानी पिहिताश्रव नाम के एक दिगम्बर मुनि पधारे । ऐसा सुनते ही नगरवासी लोग दर्शनों के लिये उमड़ पड़े, तब वह दुःखी निर्नामिका भी गई, वहाँ जाने के बाद मुनीश्वर के सब लोगों ने दर्शन पूजा किया, और पास में बैठ गये । मुनिराज के मुख से दयाधर्म का उपदेश सुनकर यह निर्नामिका अपने दोनों हाथ जोड़कर कहने लगी की हे दयासिन्धो, मेरे को यह दुःख प्राप्त हो रहा है उसका कारण क्या है ? इस दुःख का निवारण कैसे हो, मुझे कहो । तब कन्या की विनयपूर्वक दुःख की कहानी सुनकर मुनिराज अपने अवधि ज्ञान के बल से जानकर सर्ववृतांत कहने लगे, हे कन्ये तुमने पूर्वभव में, स्वाध्याय में रत एक समाधिगुप्त मुनिराज को स्वाध्याय में कुत्ता लाकर छोड़ा और विघ्न उपस्थित किया, उस पाप कर्म के कारण तुम्हारी यह दुःखरूपी स्थिति हुई । अब तुम अपने पाप कर्म की शांति के लिए, जिनगुण संपति व्रत का पालन करो, तब तुम को सर्व सुख संपति प्राप्त होगी। ऐसा कहकर व्रत की विधि कह सुनाई । _____यह सब सुनकर उसको पश्चाताप पूर्वक समाधान हुआ । तब निर्नामिका मुनिश्वर को कहने लगी कि हे मुनिश्वर यह व्रत मुझे प्रदान करो, उसने व्रतको ग्रहण किया और सब लोगों के साथ वापस घर को लौट आई, उस निर्नामिका ने गांव के
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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