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व्रत कथा कोष
प्रहं चतुर्मुखत्व घातिक्षय जातिशय जिनगुण संपदे नमः स्वाहा
सर्वविद्यश्वरत्व "...
अच्छायत्व " " " अपक्षमस्पंदाव " " " " " " " समान नखकेशत्व " " " " "
देवकृत चौदह अतिशय मंत्र अहं सर्वार्धमागधीय, भाषा, देवोपनीतातिशय, जिनगुणसंपदे, नमः स्वाह " सर्वजनमैत्री भाव देवोपनीतातिशय, जिनगुणसंपदे, नमः स्वाहा " सर्वफलादिशोभित तरू
" " " " आदर्शतल प्रतिमा रत्नमयी मही " " " " " विरहणानुगतवायु
सर्वजनपरमानन्द " सुरभिगंधयुक्त वायुकुमारोपशमित धूलि कंटकादि, देवोपनीता
तिशय, जिनगुण संपदे नमः स्वाहा " मेघकुमारकृत सुरभिगंधि गंधोदक वृष्टि " " " पादन्यासकृत हेममय दल कमल समूह" " " " फल भार नम्रशाल्यादि समस्त सस्य युक्तभूमि
शरतकालवनिर्मल गगन " शरन्मेघवन्निर्मलदिग्विभाग " एतैतेति त्वरितं चतुणिकायामर परस्पराद्वान" "
" निर्मलद्य ति मण्डलयुक्त धर्मचक्र " " " " " " दर्शनविशुद्धयादि सकल जिनगुण संपदेभ्यो नमः स्वाहा ।
इन मन्त्रों से अर्घ्य चढ़ाकर ६४ पुष्प लेकर मन्त्र बोलता जाय और पुष्प चढ़ाता जाये, क्रमशः प्रत्येक मन्त्रों का १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, अन्त में १०८ बार णमोकार मन्त्र का जाप करे, उसी प्रकार उपवास करे, जिन सहस्र नाम पढ़, शास्त्र स्वाध्याय करे, इस प्रकार ६४ उपवास व पूजा समाप्त होने के बाद व्रत का उद्यापन करे, उस समय एक नवीन प्रतिमा अहंत