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________________ २६६ ] व्रत कथा कोष फिर वह साकार राजा को अपने राज्य में लाया और बड़े समारम्भ के साथ पद्मनी की शादी कर दी। बहुत दिनों के बाद राजा अपने घर वापस आया। पर उसने अपने नगर के बाहर पद्मनी को एक महल बनाकर उसमें रख दिया और खुद अपने घर आ गया । जब श्रियादेवी को यह बात मालूम हुई तो वह चिन्ताग्रस्त होकर रहने लगी, तब साकार ने उससे कहा कि मैं तेरे पुत्र को राज्य दूंगा तू चिन्ता मत कर । फिर बहुत समय के बाद पद्मनी गर्भवती हुई और उसको भी पुत्र रत्न की उत्पत्ति हुई । उसका नाम मारोदत्त रखा । उससे प्रेम कर राजा वहीं रहने लगा और साकार व पद्मनी ने जिनदत्तराय को मारने का विचार किया। एक दिन अपने रसोई घर में रहने वाले रसोइये से कहा कि यहां पर जो नींबू देने के लिए आयेगा उसे तू मार डालना। ऐसा कहकर उसने जिनदत्तराय के हाथ में नोंक दिया और रसोई घर में जाकर देने के लिए कहा । वह जिनदत्तराय नीबू देने जा रहा था कि रास्ते में उसे मारीदत्त मिला उसने पूछा भैया आप कहां जा रहे हैं तब उसने बताया मैं नींबू देने रसोई घर में जा रहा हूं। तब मारीदत्त ने कहा ला मुझे दे दे में ही नींबू दे आता हूँ। तब मारीदत्त नींबू लेकर रसोईघर में गया । वहाँ तो पहले से बात निश्चित हो ही गई थी अतः रसोइये ने उसको मार डाला। इतने में साकार राजा व उसकी प्रिय पत्नि स्नान करके रसोई घर में आये और गुप्त रीति से उस रसोइये को पूछा । तब उसने सर्व हकीकत बराबर कह दी। तब राजा ने मारीदत्त को भोजन के लिए सैनिकों से बुलाया पर वह नहीं मिला। इधर राजा जब रसोई घर के अन्दर जाता है तो वहां उसे मारीदत्त मरा हुआ मिलता है यह देख दोनों को आश्चर्य होता है। उन्हें अपने दुष्ट कार्य के लिए पश्चाताप होता है । परन्तु दुष्ट वृत्ति अभी भी नहीं गई थी। थोड़े ही दिन में जिनदत्त राय को अपने पिता के कपट का ज्ञान हो गया। तब वह श्रीयादेवी अपने जिनदत्त राय पुत्र के साथ सिद्धान्तकीर्ति मुनि महाराज के पास गई। वहां वह भक्ति से वन्दना आदि कर उनके
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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