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________________ २८६ ] व्रत कथा कोष जिससे कषाय और विथाएं घटती हैं । उपवास के अगले दिन अतिथि को आहार कराने के उपरान्त स्वयं आहार ग्रहण करना तथा सुपात्रों को चारों प्रकार का दान देना चाहिए । इस प्रकार १४ वर्ष तक व्रत करने के उपरान्त उद्यापन करना चाहिए । इस दूसरी विधि के अनुसार व्रत वर्ष में एक बार ही किया जाता है । जिनेन्द्रगुणसम्पत्ति व्रत अरिहन्त भगवान के गुणों का चिंतन करते हुए दस जन्म, दश केवल के अतिशय के कारण बीस दशमियों को बीस उपवास; देवकृत चौदह अतिशय के कारण चौदह चतुर्दशियों के चौदह उपवास, आठ प्रातिहार्य के कारण आठ अष्ट मियों के अाठ उपवास, सोलह कारण भावना की प्राप्ति के लिये सोलह प्रतिपदानों के सोलह उपवास, पंचकल्याण की प्राप्ति के निमित्त पञ्चमियों के पांच उपवास ; इस प्रकार कुल २० दशमी + १४ चतुर्दशी+ ८ अष्टमी + १६ प्रतिपदा + ५ पञ्चमी = ६३ प्रोषधोपवास किये जाते हैं। जिनगुणसम्पत्ति व्रत की विधि जिनगणसम्पत्तौ तु प्रतिपदः षोडशोपवासाः पञ्चम्याः पञ्चोपवासाः अष्टम्याः अष्टौ उपवासाः दशम्याः दशोपवासाः चतुर्दश्याः चतुर्दशोपवासाः, षष्ठयाः षड़पवासाः चतुर्थ्याश्चत्वारः उपवासाः, एवं त्रिषष्टिः उपवासाः भवन्ति । ज्येष्ठमासकृष्ण पक्षीयप्रतिपदामारभ्य व्रतं क्रियते यावत्रिषष्टिः स्यादेष नियमो नैव ज्ञायते पूर्वोपवासस्यैव श्रु तेऽप्युपदेशदर्शनात् । अन्येषां पृथक् भूतता स्वरूचिसम्मता । अर्थ :-जिनगुणसम्पत्ति व्रत में प्रतिपदा के सोलह उपवास, पञ्चमी के पांच उपवास, अष्टमी के पाठ उपवास, दशमी के दश उपवास, चतुर्दशी के चौदह उपवास, षष्ठी के छः उपवास और चतुर्थी के चार उपवास, इस प्रकार कुल ६३ उपवास किये जाते हैं । यह व्रत ज्येष्ठ मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से प्रारम्भ होता है । ६३ उपवास लगातार किये जायें, ऐसा नियम नहीं है । जिस तिथि के उपवास किये जायें उनको पूर्ण करना आवश्यक हैं, एक तिथि के उपवास पूर्ण हो जाने पर दूसरी तिथि के उपवास स्वेच्छा से किये जा सकते हैं।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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