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व्रत कथा कोष
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श्रीऋषभजिनेन्द्राय नमः । इस मन्त्र का जाप करना होता है । ज्येष्ठ मास भर तीनों समय सामायिक करना, ब्रह्मचर्य का पालन एवं शुद्ध और अल्प भोजन करना आवश्यक है।
कथा इस व्रत को गुजरात देश के खम्भपुरी नगरी में सोमशर्मा ब्राह्मण के यहां यज्ञदत्त की स्त्री सोमश्री ने किया था, व्रत के प्रभाव से श्रीधर राजा की पुत्री कुम्भश्री हई। मुनिराज के उपदेश से इस भव में भी व्रत को पालन किया। प्रतिदिन अभिषेक करके गंधोदक लाकर अपनी पूर्व पर्याय की सास के शरीर में लगाया, जिससे उसके शरीर का कुष्टरोग दूर हुआ । व्रत के प्रभाव से स्त्रीलिंग छेदकर दूसरे स्वर्ग में देव हुई और भवान्तर में मोक्ष प्राप्त करेगी।
जिनमुखावलोकन प्रत की विधि कि नाम जिनमुखावलोकनं व्रतम् ? को विधि : ? जिनमुखदर्शनान्तरमाहरो यस्मिन् तज्जिनमुखावलोकनं नामैतत् निरवधि व्रतम् । इदं व्रतं भाद्रपदमासे करणीयम, प्रोषधोपवासानन्तरं पारणा पुनः प्रोषधोपवासः एवमेव प्रकारेण मासान्तपर्यन्तमिति ।
अर्थ :-जिनमुखावलोकन व्रत किसे कहते हैं ? उसकी विधि क्या है ? आचार्य उत्तर देते हैं कि प्रातःकाल जिनेन्द्रमुख देखने के अनन्तर आहार ग्रहण करना जिनमुखावलोकन व्रत है। यह निरवधि व्रत होता है । यह व्रत भाद्रपद मास में किया जाता है । प्रथम प्रोषधोपवास, अनन्तर पारणा, पुनः प्रोषधोपवास, पश्चात् पारणा, इसी प्रकार मासान्त तक उपवास और पारणा करते रहना चाहिए ।
विवेचनः--जिनमुखावलोकन व्रत के सम्बन्ध में दो मान्यताएं प्रचलित हैं । प्रथम मान्यता इसे एक वर्ष पर्यन्त करने को है और दूसरी मान्यता एक मास तक करने की । प्रथम मान्यता के अनुसार यह व्रत भाद्रपद मास से प्रारम्भ होकर श्रावण मास में पूरा होता है और द्वितीय मान्यता अनुसार भाद्रपद मास की कृष्ण प्रतिपदा से प्रारम्भ होकर उस मास की पूर्णिमा को समाप्त हो जाता है। एक वर्ष तक करने का विधान करने वालों के मत से वर्ष में ३६ उपवास और एक मास का विधान मानने वालों के मत से एक मास में १५ उपवास करने चाहिए।