________________
२८२ ]
व्रत कथा कोष
प्रथम मान्यता बतलाती है कि भाद्रपद मास की प्रतिपदा को पहला उपवास करना चाहिए । पश्चात् इस मास में किन्हीं भी दो तिथियों को दो उपवास करने चाहिए । परन्तु इस बात का ध्यान सदा रखना होगा कि प्रत्येक मास में कृष्णपक्ष में दो उपवास और शुक्लपक्ष में एक उपवास करना पड़ता है । इस व्रत के लिए कोई तिथि निर्धारित नहीं की गयी है । यह किसी भी तिथि को सम्पन्न किया जा सकता हैं। प्रथम मान्यता के अनुसार उपवास के दिन रात भर जागरण करते हुए प्रातःकाल श्री जिनेन्द्र प्रभु के मुख का अवलोकन करना चाहिए। रात को ॐ प्रहद्भ्यो नमः मन्त्र का जाप करना चाहिए। जिन दिनों उपवास नहीं करना है, उन दिनों भी उपयुक्त मन्त्र का एक जाप अवश्य करना चाहिए। उपवास के दिन पञ्चाणु व्रतों का पालन करना, विशेष रूप से ब्रह्मचर्य धारण करना तथा पूजन-सामायिक करना आवश्यक है । जिस समय जिनमुखावलोकन किया जाता है, उस समय व्रत करने वाला भगवान् के समक्ष दोनों घुटने पृथ्वी पर टेककर घुटनों के बल बैठ जाता है अथवा सुखासन लगाकर बैठता है । व्रती को भगवान के समक्ष बैठते हुए निम्न मन्त्रों का उच्चारण करना चाहिए।
"त्रैलोक्यवशंकराय केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीमहत्परमेष्ठिने नमः"; 'संसारपरिभ्रमणविनाशनाय अभीष्टफलप्रदानाय धरणेन्द्रफरणमण्डलमण्डिताय श्रीपार्श्वनाथस्वामिने नमः'; 'ॐ ह्रां ह्रीं ह्र, ह्रौं ह्रः असि प्रा उ सा नमः सर्वसिद्धि कुरु कुरु स्वाहा ।'
इन तीनों मन्त्रों का उच्चारण करते हुए अन्तिम मन्त्र का १०८ बार जाप करना चाहिए । प्रोषधोपवास के दिन भी अन्तिम मन्त्र का तीनों सन्ध्याओं में जाप करना मावश्यक है। उपवास के दूसरे दिन पारणा करते समय भोज्य वस्तुओं को संख्या निर्धारित कर लेनी चाहिए।
दूसरी मान्यता के अनुसार भी उपवास के दिन 'ॐ ह्रां ह्रीं ह्र ह्रौं ह्रः प्रसि प्रा उ सा नमः सर्वसिद्धिं कुरु कुरु स्वाहा' इस मन्त्र का तीनों सन्ध्यामों में जाप करना चाहिए। अन्य दिनों में दिन में एक बार इस मन्त्र का जाप किया जाता है । जिनेन्द्रभगवान के दर्शन के अनन्तर अन्य कार्यों का प्रारम्भ करना चाहिए। जिन