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व्रत कथा कोष
पंचम वर्ष .—जिस जिस महीने में निर्वाण कल्याण होगा उस दिन उपवास करे। इस प्रकार से यह व्रत ५ वर्ष यथाविधि करे-फिर पूर्ववत उद्यापन करे ।
कथा श्रेणिक राजा ने यह व्रत किया था।
ज्येष्ठजिनवर व्रत की विधि ज्येष्ठकृष्णपक्षे प्रतिपदि ज्येष्ठशुक्ले प्रतिपदि चोपवासः, प्राषाढ़ कृष्णस्य प्रतिपदि चोपवासः, एवमुपवासत्रयं करणीयम्, ज्येष्ठमासस्यावशेषदिवसेष्वेकाशनं करणीयम्, एतव्रतं ज्येष्ठजिनवरव्रतं भवति । ज्येष्ठप्रतिपदामारभ्याषाढकृष्णाप्रतिपत् पर्यन्तं भवति ।
अर्थ :-ज्येष्ठकृष्णा प्रतिपदा, ज्येष्ठशुक्ला प्रतिपदा और आषाढकृष्णा प्रतिपदा, इन तीनों तिथियों में तीन उपवास करने चाहिए । ज्येष्ठ मास के शेष दिनों में एकाशन करना होता है । इस व्रत का नाम ज्येष्ठ जिनवर व्रत है। यह ज्येष्ठ कृष्णा प्रतिपदा से प्रारम्भ होता है और प्राषाढ़ कृष्णा प्रतिपदा को समाप्त होता है।
विवेचन :-ज्येष्ठजिनवर व्रत ज्येष्ठ के महीने में किया जाता है । यह व्रत ज्येष्ठ कृष्णा प्रतिपदा से प्रारम्भ होकर आषाढ़ कृष्णा प्रतिपदा को समाप्त होता है । इसमें प्रथम ज्येष्ठवदी प्रतिपदा को प्रोषध किया जाता है, पश्चात् कृष्ण पक्ष के शेष १४ दिन एकाशन करते हैं । पुनः ज्येष्ठ सुदी प्रतिपदा को उपवास और शेष १४ दिन एकाशन तथा प्राषाढ वदी प्रतिपदा को उपवास कर व्रत की समाप्ति कर दी जाती है।
ज्येष्ठजिनवर व्रत में मिट्टी के पांच कलशों से प्रतिदिन भगवान आदिनाथ का अभिषेक करना चाहिए। 'प्रों ह्रीं श्रीज्येष्ठजिनाधिपतये नमः कलशस्थापनं करोमि' इस मन्त्र को पढ़कर कलशों की स्थापना की जाती है। पांच कलशों द्वारा अभिषेक स्थापन के समय ही किया जाता है और एक कलश से जयमाला पढ़ने के अनन्तर अभिषेक होता है । इस व्रत में ज्येष्ठजिनवर की पूजा की जाती है । 'प्रों ह्रीं