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________________ व्रत कथा कोष । २७६ प्राकर पूजा महोत्सव करके गया था, वह तिथि माननी प्रत्यन्त सुखकर है। उसी प्रकार अरिहन्त यह मंगल लोगोत्तम व शरण में जाना उचित है । श्रेयकर है । उसी प्रकार से उनके कल्याणक भी मंगल है । इसलिए उस दिन भव्य जीवों को पूजा व सत्पात्र को दान देकर पुण्य सम्पादन करना चाहिए । अष्ट द्रव्य से उनकी पूजा अर्चना करनी चाहिए, श्रुत व गणधर की पूजा करके यक्षयक्षी की अर्चना करनी चाहिए। जाप ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं (यहां प्रागे जिस तीर्थंकर का कल्याणक होगा वहीं नाम देना) तीर्थंकराय गोमुखयक्ष चक्र श्वरी यक्षी सहिताय (यहाँ जिस तीर्थंकर के यक्ष यक्षी होगो वही नाम) नमः स्वाहा इस का १०८ बार जाप करे । णमोकार मंत्र का जाप कर यह कथा पढ़नी चाहिये । जो तीर्थंकर होंगे उनका चितवन मनन करना । महाय॑ दे आरती करनी चाहिये । उस दिन उपवास करके धर्मध्यानपूर्वक दिन बितावे । इस प्रकार से प्रत्येक मास में जितने कल्याणक पायें उतने ही पूजा उपवास करे। इस प्रकार १२० कल्याणक के १२० उपवास करे। फिर उसका उद्यापन करे । फिर नया मन्दिर बनाये या नवीन मूर्ति लाकर विराजमान करे । चतुर्विंशति तीर्थकर प्रतिमा विराजमान कर महाभिषेक करे। विधान करे। चतुःविध संघ को दान दे । ऐसी इस व्रत की विधि है। अथवा प्रथम वर्ष :-जिस साल गर्भ कल्याणक की तिथि आयेगी उस दिन उपवास करे। द्वितीय वर्ष :-जिस महिने में जन्म कल्याणक की तिथि आयेगी उस दिन उपवास करना। तृतीय वर्ष :-जिस-जिस महिने में दीक्षा कल्याणक की तिथि प्रायेगी उस दिन उपवास पूजा आदि करे । चतुर्थ वर्ष :--जिस-जिस महिने में केवल ज्ञान कल्याणक को तिथि होगी उस दिन उपवास करे।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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