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व्रत कथा कोष
रत्नत्रय प्रतिमा का अभिषेक करके विधान करे, चतुर्विध संघ को दान देवे ।.......
कथा
इस व्रत को राजा श्रीषेण (हरीषेण) ने किया था, उसके प्रभाव से चक्रवर्ती होकर सुखों को भोगा । श्रेणिक राजा व रानी चेलना ने इस व्रत को पालन किया था।
अथ छेदोपस्थापना चारित्र व्रत कथा । व्रत विधि :-पहले के समान सब विधि करे, अन्तर केवल इतना है कि प्राषाढ़ शु० १३ के दिन एकाशन करे, १४ के दिन उपवास करे । पूजा, माहारदान पहले के समान करे, १४ दम्पतियों को भोजन करावे । वस्त्र आदि दान करे । १०८ फल व पुष्प चढ़ावे, १०८ चैत्यालय की वन्दना करे।
कथा पहले सिंधुदेश में सैंधव राजा सिंधुदेवी अपनी महारानी के साथ रहता था। उसका पुत्र सिंधुकुमार, उसकी स्त्री सिंधुविजय और सिंधमती और सिंधकीर्ति पुरोहित उसकी स्त्री सुन्दर वदनी और सिंधुदत्त श्रेष्ठी उसकी स्त्री सिंधुदत्ता और जयसिंधु सेनापति उसको स्त्री जयसिंधु सारा परिवार सुख से रहता था। एक बार उन्होंने सिंधुसागर मुनि से व्रत लिया। इसका विधिपूर्वक पालन किया । सर्वसुख को प्राप्त कर अनुक्रम से मोक्ष गए।
___ अथ श्री जिनेन्द्र पंचकल्याण व्रत कथा व्रत विधि-चैत्र आदि १२ महीनों में शुक्ल व कृष्ण पक्ष में चौबीस तीर्थंकरों के गर्भ, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और मोक्ष की जो जो तिथि हो उस दिन उपवास करना । उपवास के पहले दिन एकाशन करना चाहिए । उस दिन शुद्ध कपड़े पहनकर अष्टद्रव्य लेकर मन्दिर जाना चाहिए। पीठ ( वेदी ) पर जिस भगवान का कल्याणक होगा उस प्रतिमा को रखकर अभिषेक करे। जिस समय प्रत्यक्ष पंचकल्याणक हुए थे उस समय सौधर्म इन्द्र खुद अपने चतुर्निकाय के साथ