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________________ व्रत कथा कोष । २७५ कथा जम्बूद्वीप में मेरुपर्वत के पूर्व विदेह क्षेत्र में पुष्कलावती नामक विशाल देश है । वहां पुण्डरीकिणी नगर में प्रजापाल राजा राज्य करते थे जो पराक्रमी, धर्मवान व नीतिवान् थे। कनकमाला नाम की रूपवती, गुणवती पटराणी थी । लोकपाल नामका पुत्र था जिसके रत्नमाला धर्मपत्नी थी। कुबेरकांत श्रेष्ठी, धर्मपत्नी कुबेरदत्ता, मन्त्री, पुरोहित, सेनापति इनके साथ समय बिता रहे थे। एक दिन उनके महल में चारणमुनी चर्या के लिए आये । उनका प्रतिग्रहण कर राजा ने प्रासुक आहार दिया । पश्चात् मुनिवर ने उपदेश दिया जिसे सुनकर श्रेष्ठी की पत्नी कुबेरदत्ता बोली-हे स्वामिन् हमें उत्तम सुख की प्राप्ति हेतु व्रत बतायें । तब मुनिराज बोले-हे कन्या तू चतुर्विशतिगणिनी व्रत का पालन कर जिससे तुम्हें स्वर्ग ही नहीं मोक्ष सुख भी मिलेगा। ऐसा कहकर उसे व्रत विधि बतायी । श्रेष्ठी की पत्नी ने वह व्रत स्वीकार किया, यह देख सभी ने व्रत लिया तथा विधिपूर्वक पालन किया, जिससे उन्हें स्वर्ग सुख तथा क्रम से मोक्षसुख की प्राप्ति हुई। ___ चारित्राचार व्रत कथा आषाढ़ शुक्ला त्रयोदशी के दिन शुद्ध होकर मन्दिरजी में जाये, प्रदक्षिणा लगाकर भगवान को नमस्कार करे। विमलनाथ भगवान का पंचामृताभिषेक करे, अष्टद्रव्य से पूजा करे, नैवेद्य चढ़ावे, श्रु त, गणधर वयक्षयक्षि व क्षेत्रपाल की पूजा करे। __ ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहँ विमलनाथ तीर्थंकराय पाताल यक्ष वैरोटीयक्षि सहिताय नमः स्वाहा । इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे । व्रत कथा पढ़े, पूर्ण अर्घ्य चढ़ाये, मंगल आरती उतारे, सत्पात्रों को दान देवे, ब्रह्मचर्य का पालन करे। ____इस प्रकार तेरह त्रयोदशी पूजापूर्वक व्रत कर अन्त में उद्यापन करे । उस समय विमलनाथ विधान कर, महाभिषेक करे, चतुर्विध संघ को चारों प्रकार का दान देवे ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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