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________________ २७६ ] व्रत कथा कोष कथा इस व्रत को पहले धनराय नामक राजा ने किया था । अन्त में स्वर्ग सुख प्राप्त करके मोक्ष को गये । इस व्रत की कथा राजा श्रेणिक और रानी चेलना की कथा ही है । श्रथ चतुपर्व व्रत कथा आषाढ़ शुक्ला अष्टमी के दिन शुद्ध होकर मन्दिर में जावे, तीन प्रदक्षिणा पूर्वक भगवान को नमस्कार करे । यक्षि सहित अभिनन्दन प्रभु का पंचामृताभिषेक करे । अष्टद्रव्य से पूजा करे, श्रुत व गणधर की तथा यक्षयक्षि व क्षेत्रपाल की पूजा करे । ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रहं अभिनन्दन तीर्थंकराय यक्षेश्वर यक्ष वज्रशृंखला यक्षी सहिताय नमः स्वाहा । इस मन्त्र को १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करें । णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे | व्रत कथा पढ़े, चार प्रकार का नैवेद्य चढ़ावे, एक पूर्ण अर्ध्य मंगलप्रारती पूर्वक चढ़ावे, अष्टमी से लेकर चार दिन तक पूर्व व्रत पूजा करके एक वस्तु से एकाशन करे, फिर चार दिन उसी प्रकार पूजा करके कोजी प्रहार करें, फिर चार दिन फलाहार, फिर चार दिन उपवास करे । इस प्रकार सोलह दिन में व्रत को पूरा करे, अन्त में उद्यापन करे, उस समय अभिनन्दननाथ विधान करके महाभिषेक करे । चतुविध संघ को दान देवे, यथायोग्य शास्त्रादि उपकरण दान करे, ब्रह्मचर्य का पालन करे, धर्मध्यान से पूर्ण समय बितावे । कथा पहले इस व्रत को जिनदत्त श्रेष्ठी ने किया था, क्रमशः स्वर्ग सुख का उपभोग किया था । व्रत कथा में रानी चेलना व राजा रिंक की कथा पढ़े । चूडामणि व्रत कथा कार्तिक शुक्ला एकादशी के दिन जिन मन्दिर जाकर भगवान को नमस्कार करे, नवदेवता प्रतिमा और चौबीस तीर्थंकर प्रतिमा स्थापन कर पंचमृताभिषेक करे,
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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