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________________ व्रत कथा कोष [ २७३ अथ चतुर्विशतियक्ष व्रत कथा व्रत विधि :- ज्येष्ठ शुक्ला ७ को एकाशन करे । अष्टमी के दिन शुद्ध कपड़े पहन कर पूजा द्रव्य हाथ में लेकर मंदिर जाये । तीन प्रदक्षिणा पूर्वक जिनेन्द्र को साष्टांग नमस्कार करें। पीठ पर २४ तीर्थंकर प्रतिमा यक्षयक्षी के साथ स्थापित कर पंचामृताभिषेक करे, अष्टद्रव्य से चौबीस तीर्थंकर, नवदेवता, श्रु त व गणधर तथा २४ यक्षयक्षी की अर्चना करे । क्षेत्रपाल की अर्चना करे। ॐ ह्रां ह्रीं ह्रह्रौं ह्रः असिग्राउसा नमः स्वाहा । इस मन्त्र से पुष्प से १०८ बार जाप करे। फिर ॐ मां कों ह्रीं हूं फट चतुर्विशतियक्षेभ्यो नमः स्वाहा ।। १०८ पुष्प से जाप करे। णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप करे । यह व्रत कथा पढ़कर एक पात्र में पान रखकर उस पर अष्टद्रव्य तथा एक नारियल रखकर महार्य करे और मंगल आरती उतारे । उस दिन उपवास करे । दूसरे दिन पूजा व दान करके पारणा करे। तीन दिन ब्रह्मचर्यपूर्वक धर्मध्यान से समय बितावे । इस प्रकार अष्टमी व चतुर्दशी को पूजाक्रम करे । इस प्रकार २४ पूजा पूर्ण होने पर इसका उद्यापन करे । उस समय २४ तीर्थंकरों की आराधना यक्षयक्षी सहित करके महाभिषेक करे। चतुःसंघ को चतुर्विधि से दान दे । इस प्रकार यह इसकी पूर्ण विधि है। .....- कथा धातकी खंड में सीतोदा नामकी बड़ी नदी है। उसके उत्तरी किनारे कच्छ नामका विशाल देश है जिसमें वीतशोक नामक अत्यंत मनोहर नगर है। वहां पहले प्रभवतेज नाम के पराक्रमी राजा राज्य करते थे। उनकी प्रभावती पटराणी थी जो अतिशय गुणवती थी। उनके प्रहसित नाम के पुत्र थे । उनकी स्त्री का नाम प्रिय मित्रा था। प्रताप नामक मंत्री, उसको भार्या प्रियकारिणी, वैसे ही पुरोहित श्रेष्ठी, सेनापति आदि परिवारजन थे । उनके साथ एक बार राजा नगर के उद्यान में प्रहसित वाक्य मुनिवर के आने के समाचार मिलते ही दर्शन को गये, वहां जाकर
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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