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________________ २७२ ] व्रत कथा कोष पास आई, और कहने लगी की हे सौभाग्यशालिनी जिनमती, तू चिन्तातुर क्यों दिख रही है ? तब सेठानी ने कहा कि हे देवी, मेरे पति कुष्ट रोग से ग्रसित हो गये हैं अब मैं क्या करूं कुछ उपाय समझ में नहीं आ रहा है, कौनसे पापकर्म के कारण मेरे पतिदेव रोगाक्रांत हुये ? तब देवी कहने लगी है जिनभक्ते, तुम मासिक धर्म में थी (रजस्वला) उसी अवस्था में तुमसे आहार बनवा कर तुम्हारे पति ने प्रतिमुक्तक मुनिराज को आहार दे दिया, तुम्हारी इच्छा न होते हुये भी ऐसा कार्य हुआ है इस पाप के कारण ही तुम्हारे पति को कुष्ट रोग हुआ है, उस रोग को ठीक होने के लिये, तुम नित्य भगवान का अभिषेक करो और उस गंधोदक को तुम्हारे पति के शरीर में लगाओ और चंदन षष्टि व्रत को पालन करो, उसका उद्यापन करो, यही रोग के परिहार का उपाय है, तब देवी ने पूर्ण व्रत की विधि कही । सेठानी ने देवी से पूछा कि आप कौन हैं, आप का स्थान कहां है, श्रापको इस व्रत की विधि किसने कही, तब देवी कहने लगी मेरा नाम ज्वालामालिनी देवी है, पूर्व विदेहक्षेत्र में पुंडरीकिणी नगरी है, वहां सीमंकर उद्यान में मेरा निवास स्थान है, वहां एक चैत्यालय है, एक बार चैत्यालय में सुमति नाम की आर्यिका प्रायो, भक्त लोग माता जी से चंदन षष्टि व्रत का स्वरूप पूछ रहे थे, वहां माता जी के मुख से मैंने इस व्रत की विधि सुनी थी सो ज्यों की त्यों तुमको मेने कही, ऐसा कहकर देवी अदृश्य हो गई । देवी के मुख से यह सब सुनकर सेठानी को बहुत आनन्द हुआ, जिनमति ने यथाविधि व्रत का पालन किया, व्रत का उद्यापन किया, जिनेन्द्र भगवान का अभिषेक करके सेठ के शरीर में लगाया लगाते ही सेठ का कुष्ट रोग नष्ट हो गया, दोनों ही पति पत्नि कामदेव और रति के समान शोभा पाने लगे और सुख को भोगने लगे । एक समय जिनमति को सूर्य मंडल छिन्न-भिन्न दिखा, तब जिनमति ने समझ लिया कि मेरी आयु मात्र दस दिन की रह गई है, उसने परिवार से मोह छोड़कर आर्यिका माताजी से प्रायिका दीक्षा ग्रहण कर ली और समाधिमरण कर स्वर्ग में स्त्रीलिंग छेद कर देव हो गई । तब सेठ ने भी अपने पुत्र को नगर श्रेष्ठीपद देकर जिनदीक्षा ग्रहण करली और समाधिमरण कर उसी स्वर्ग में वह भी देव हो गया, कालान्तर में दोनों ही मोक्ष गये ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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