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लिए कहानी कला को ही समुचित समझा और है भी, इसीलिए जैनागम के चार प्रकार में प्रथमानुयोग अर्थात् कहानी कथा के पुराणों व कोषों को ही समस्त वाङ्गमय में प्राथमिकता भी दी गई और हृदय ग्राह्यता को प्रथम कारण माना गया है।
वर्तमान में भी कथा-कहानी के महत्व को अधिमान एवं प्रतिष्ठा जनक स्थान प्राप्त है, इनके माध्यम से बच्चों को भी संस्कारित किया जा सकता है तथा सरलता से व्रतों के महत्व पूजार्चना की वैज्ञानिकता, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यकचारित्र को मोक्ष मार्ग में भूमिका, चारों अनुयोग साथ ही सम्पूर्ण विश्व के ज्ञान विज्ञान से सम्बन्धित साहित्य भूमण्डल, स्वर्ग नरक, धर्म, दर्शन, एवं विज्ञान, पाप-पुण्य निमित्त उपादान, एवं मानव जीवन की गरिमा व महिमा को समझा जा सकता है।
वर्तमान में "परमारथ के कारणे, साघुन धरा शरीर" के जीवन साक्षी, जीवनोस्थान के प्रेरणा पुज, जाज्वल्यमान श्रमण-रत्न, वात्सल्य रत्नाकर, स्याद्वाद केशरी परम पूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुथुसागरजी महाराज ने एक कुशल संघटक, शिल्पी एवं मूर्तिमन तीर्थ के भांति समाज को सही दिशा निर्देश एवं तत्वज्ञान आगम परिचय कराने हेतु "व्रत कथा कोष' को रत्न मजूषा प्रदान की हैं । नि:सन्देह समस्त समाज इस अनुपम कृति से लाभान्वित होकर अपना मनुष्य जन्म सार्थक करेगा। चूकि ये कथा कोरी कल्पना नहीं है, सत्य है, हम जैसे ही मानवों का अनुभव-कोष है, हम पुनीत पथ पर अग्रसर होकर गुरू-प्रयास को एवं पाशीर्वाद से साक्षात्कार करें भौतिक ताप के इस संक्रमण युग में शीतल फुहार का प्राध्यात्मिक आनन्द लेकर जीवन सुवासित करें
वस्तुतः गणधराचार्य श्री जी के करूणा-भाव का प्राणि जगत युगों-युगों तक ऋणी रहेगा!
प्रस्तुत ऐतिहासिक, विशिष्ट ग्रन्थ का प्रकाशन श्री दिगम्बर जैन कुथु विजय ग्रन्थमाला समिति द्वारा हो रहा है इसके प्रकाशन संयोजक परम गुरुभक्त, साहित्य सेवी एवं निस्पृह धर्मशील श्री शांति कुमारजी गगंवाल है जो अपनी अहर्निश साधना से अल्प समय में ही १७ वां पुष्प समर्पित कर रहें हैं।
__ सद् संकल्प के लिए हार्दिक बधाई एवं निरन्तर प्रगतिशीलता के लिए मंगल कामनाये।
गुरु-चरणों में सविनय नमित
डा. (श्रीमती) नीलम जैन सम्पादक-धर्म दर्शन विज्ञान शोध प्रकाशन