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________________ प्रकाशित ग्रन्थ के बारे में मेरे विचार साहित्य जीवन का अध्ययन है। सच्चे अर्थों में मानवीय भावों की सर्वश्रेष्ठ अनुकृति है, जीवन की सुन्दर व्याख्या और व्यवहार का उचित मुहावरा है, मानव समाज का मस्तिष्क होता है साहित्य, मनीषियों ने साहित्य उसे ही कहा है जिसमें हित की भावना सन्निहित हो "हितेन सहितम् सहितस्य भावः साहित्यम्' श्राचार्य कुन्तक के अनुसार-साहित्य वह है जिसमें शब्द और अर्थ की परस्पर स्पर्द्धामय मनोहारिणी श्लांघनीय स्थिति हो" साहित्य सोय होता है, साहित्य से ही मानव मस्तिष्क, सभ्यता, संस्कृति एवं सामाजिक विवेक का विकास होता है इसीलिए साहित्य को समाज का प्रतिबिम्ब, दर्पण, दीपक व मस्तिष्क कहा गया है । साहित्य प्रतीत का दर्पण, वर्तमान का प्रतिबिम्ब व भविष्य के लिए दीपक होता है । साहित्य की मुख्य दो विद्या है । गद्य और पद्य किन्तु गद्य और पद्य के पृथक-पृथक अनेकों भेद हैं- गद्य साहित्य की सबसे लोकप्रिय विद्या कहानी ही है । यह अपनी यर्थाथता, मनौवैज्ञानिकता एवं वर्णनात्मकता के कारण अत्यन्त प्रभावशाली है । यह जीवन का एक खण्ड चित्र प्रस्तुत करती है। कहानी का उद्देश्य मनोरंजन के साथ-साथ व्यक्ति और समाज के महत्वपूर्ण अनुभवों, नीति और उपदेश को अभिव्यक्ति प्रदान करना भी है, इसने अपने चंचल और थिरकते रूप में सम्पूर्ण सृष्टि के इतिहास को समाहित कर लिया है । गद्य की इस सशक्त विद्या का प्रारम्भ लेखन युग से भी प्रारम्भ का है, मानव में जब स्मृति, संवेदनशीलता एवं मनोभावों की अभिव्यक्ति का अभ्युदय हुआ तब से ही कहानी का उद्भव काल माना जाता है मानव ने जड़-चेतन, दृश्य और अदृश्य के माध्यम से धर्म, नीति, सामाजिकता राजनीति, ज्ञान विज्ञान एवं व्यावहारिकता का ज्ञान देने हेतु कहानी को ही सशक्त अवलम्ब माना, इसकी संप्र ेषणीयता इतनी प्रभावी और अनुकूल रही कि अपने उद्भव काल ही अद्यतन कहानी संवेदनात्मक चंचल सरिता की तरह प्रवाहित एवं समादत है । प्रत्येक काल खण्ड में 'कहानी' की उपयोगिता सर्वमान्य एवं सर्वग्राह्य रही । जैन शासन में भी कहानी का अभ्युदय आदिनाथ तीर्थंकर के देशना काल से ही है, समोशरण में जिज्ञासुत्रों के अनेकों प्रश्नों का समाधान कहानी कथा के माध्यम से प्रभावी ढंग से विश्लेषित करने का वर्णन है, जैनागम के सिद्धान्तों एवं मानव जीवन पर इनके प्रभाव का कथा कहानी के माध्यम से सांगोपांग वर्णन है सत्य तो यह है कि श्रादि तीर्थंकर ने भी नाबाल वृद्ध, प्रतिभा सम्पन्न, मन्द व सामान्य बुद्धि युक्त जनमानस के
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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