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प्रस्तुत ग्रंथ में जो कथाएं हैं-वे सार्व देशिक, सार्वकालिकः, (सार्वज) तीन मानव मात्र को सुखदायक हैं । इनका महत्व ईसय की कथानों, पंचतंत्र और हितोय) देश, कथा सरित्सागर और लौक कथानों से भी अधिक है क्योंकि कथाए, रात्रि कथा, निंदा कथा, कलह कथा, युद्ध कथा, राज छल कथा, त्रियाहठ कथा विषय भोग कथा, धूर्त कथानक एवं गल्प-मनोरंजक, कल्पना पूर्ण कथाएं नहीं हैं अपितु मौलिक-पौरागिक-शास्त्र सम्भूत- प्राचीन-उपादेय एवं मानव जीवन को सुखद् स्वस्थ, सुसंस्कृत, शालीन जीवन की समस्याओं का निराकरण करके-इच्छित सफलताएं देने वाली हैं। गणघराचार्य श्री कुथुसागर महाराज की इस कृति को प्रकाशित करके श्री गंगवाल शांतिकुमारजी ने केवल जैन जगत की सेवा की है, अपितु राष्ट्रभाषा हिन्दी का भण्डार भी भरा है। विश्वास है पिछले प्रकाशनों की तरह यह कृति भी सभी के स्नेह आदर की पात्र बनेगी।
डा. प्रो. अक्षय कुमार जैन
ज्योतिष विशेषज्ञ ५१/२ रावजी बाजार, इंदौर