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________________ इसी प्रकार पुष्पांजलि, त्रिलोकतीज, मुकुट सप्तमी, अक्षय फल दसवीं, श्रावण द्वादशी, रोहिणीव्रत, आकाश पंचमी, कवल चान्द्रायण, जिनगुण सम्पत्ति, चतुर्दशी, निर्जरा पंचमो, कर्मक्षय व्रतोद्यापन एवं अन्य व्रतों को भी भावशुद्धि, विधि पूर्वक विद्वान, सयमी शास्त्रज्ञों के मार्ग दर्शन में करना चाहिए। प्रथमानुयोग में व्रतों के फल प्राप्त करने वालों के चरित्र वणित है-हरिवंश पुराण के ३४ वें सर्ग में सर्वतोभद्र रत्नावली, सिंह निष्क्रीड़ित, व्रतों का विस्तृत वर्णन है पद्मपुराण, आदि पुराण, हरिवंश पुराण, आराधना कथा कोष, व्रत कथा कोष, हरिवश कथा कोष आदि शास्त्रों में सभी व्रतों के पालने वाले महापुरुषों की पुण्य कथाए पठनीय, मननीय, विचारणीय एवं जोवन में ग्रहणीय हैं। इनमें कर्म फल की अनिवार्यता है एवं व्रतों से पुण्य पाप का नाश तथा मनोकामना सिद्धी के वर्णन विवरण है। इन व्रतों से स्वस्थ शरीर, निर्मल बुद्धि, पवित्रमन, स्थिरचित्त, एवं अात्मिक आनंद के साथ, लौकिक-सांसारिक सुख भोग, पुत्र, पतिप्राप्ति, दरिद्रनाश, यश-प्रतिष्ठा, रोग निवति, एवं अपयश नाश. राज सम्मान-प्रतिष्ठा तथा सुख वैभव प्राप्त होते हैं। व्रती व्यक्ति को समाज-आदर सम्मान तो देता ही है, उसका गुणानुवाद होता है। एवं घोड़े हाथियों पर बाजे-गायन-समारोह पूर्वक उसकी शोभायात्रा भी निकलती है रविवार व्रत से दारिद्रयनाश, एवं सुगन्ध दशमी व्रत से श्मसान भूमि में भी राजा के द्वारा पारिणग्रहण तथा कोढी कुष्ठी श्रीपाल को मैना सुन्दरी की सिद्धचक्र पूजा-जल से सुन्दर काम देवों का रूप पुनः प्राप्त हो जाता है । वादिराज मुनि का कुष्टनाश, मानुतुग प्राचार्य के ताले टूटना, बेड़ी जंजीरे टूटना मेंढ़क को फूल की पूजा भावना से (श्रेणिक हाथी पांव से दबकर मृत्युवाद) स्वर्ग की प्राप्ति एवं धर्म तथा पुण्य के प्रभाव से कुत्ते से देवता की योनि प्राप्त होना शास्त्रों में सुविख्यात है। दान, व्रत, और उनके फल विश्व विदित हैं। एक बट का बीज भूमि में जाने से विशाल वट वृक्ष पैदा होता है-उसी प्रकार एक क्षण की पवित्र दान भावना और कार्य से सर्व संसार सुख संभव है । As yousew. So you Reap, जैसा करोगे-वैसा बोनोगे वही फल मिलेंगे। तप करते हए मनिराज ने जलते हए दावानल में हाथियों को देखा, द्रवित हए, भावना भायी जीवों की रक्षा होवे, तत्काल वर्षा हई स हाथियों के प्राण बचे । श्रद्धा से अंजन चोर, निरंजन हो गया। मातग चाण्डाल, अहिंसा व्रत से सम्यकदृष्टि एवं श्रद्धा से देव पूजित बना, भावना से एक छोटी (गोमटघंटी) सी घंटी के जल से अभिषेक करवाकर, (वृद्धा और पुत्र की इच्छा भावना) गोमटेश्वर बाहु. बसी कहलाएं । पद्मपुरी में मूला जाट को प्रभु ने स्वप्न दिया श्री महावीर जी में गेय्या के दूध से अभिषेक स्वीकार करके यह सिद्ध कर दिया कि भावना-भक्ति और पवित्रता मन में ही है । स्वयं में ही प्रसुप्त सिद्धि और शक्ति है । व्रतों को विधि पूर्वक करने से लौकिक, सुख एवं मोक्ष का विधान शास्त्रों में है। यह ग्रंथ पहली बार जैन श्रावकों को व्रत-उनकी क्रिया, विधि, फल और उसके नायकों को एक साथ प्रस्तुत करता है।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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