SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 323
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६४ ] व्रत कथा कोष इस प्रकार ६ तिथि पूर्ण होने पर उद्यापन करे । उस समय पद्मप्रभु तीर्थंकर विधान करके उद्यापन करे । चतुर्विध संघ को दान दे । शक्ति हो तो मन्दिर बनवाये नहीं तो जीर्णोद्धार करावे ।। कथा यह व्रत पूर्वभव में चारुदत्त ने किया था जिसके निमित्त से ३३ कोटि धन का मालिक बना पर कर्म के योग से वैश्या की संगति से सब नष्ट हो गया । फिर कुछ निमित्त से जिनदीक्षा ली, घोर तपश्चर्या की जिससे सद्गति प्राप्त हुई । अथ चक्रवाल व्रत कथा फाल्गुन महिने के उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र जिस दिन पूर्ण हो, उस दिन व्रत पालन करने वाला शुद्ध होकर सब प्रकार की पूजा सामग्री हाथ में लेकर जिनमन्दिर में जावे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर ईर्यापथ शुद्धि करे, भगवान को साष्टांग नमस्कार करे, अखण्डदीप जलावे, अभिषेक पीठ पर आदिनाथ प्रभु की प्रतिमा गोमुख यक्ष चक्रेश्वरीदेवी सहित स्थापन कर भगवान का अभिषेक करे, उनके अर्घ्य, जयमाला, पूजा, स्तोत्र-पूर्वक बोलकर पूजा करे, यक्षयक्षि की व क्षेत्रपाल की भी पूजा करे। ॐ ह्रीं अहं श्रीग्रादिनाथाय गोमुख चक्र श्वरी यक्षयक्षि सहिताय नमः स्वाहा । इस मन्त्र से १०८ पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप करे, सहस्रनाम पढ़े, आदिप्रभु का जीवन चरित्र पढ़, व्रत कथा पढ़, एक थाली में अष्ट द्रव्य रखकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारे, उस दिन उपवास करे, सत्पात्रों को दानादिक देवे, धर्मध्यान से समय व्यतीत करे, ब्रह्मचर्य का पालन करे । इसी प्रकार फाल्गुन महिने के उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र पर पूजा करके उपवास करे, इसका नाम पंचकल्याण है, इस नक्षत्र के दिन उपवास करने से १००००० लक्ष उपवास का फल मिलता है ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy