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________________ व्रत कथा कोष [ २६३ कर्नाटक प्रदेश के कल्याण नगर में विज्जल नाम का राजा शीलादेवी सहित राज्य करता था, नगरी के उद्यान में ज्ञानसागर मुनिराज से रानी ने चंदना देवी व्रत को लेकर अच्छी तरह से पालन किया, उद्यापन के समय मुनिसंघ को सर्वतीर्थ क्षेत्रों की यात्रा के लिये लेकर गई और यात्रा करवाई। अंत में रानी ने दीक्षा ग्रहण को और घोर तपश्चरण कर स्वर्ग में मरकर देव हुई । श्रथ चतुरिन्द्रिय जातिनिवारण व्रत कथा विधि :- पहले के समान सब करे अन्तर सिर्फ इतना है कि चैत्र शुक्ला ४ को उपवास करना चाहिये । अभिनन्दन भगवान की पूजा व मन्त्र जाप करना चाहिये । यहां पर ४ पत्ते लेना चाहिए । अथ चारुदत व्रत कथा अथवा चारुसुख व्रत कथा व्रत विधि : - चैत्र आदि १२ महिने में किसी भी महिने के शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन एकाशन करे और ६ के दिन उपवास करे । उस दिन सुबह शुद्ध कपड़ े पहनकर व अष्टद्रव्य लेकर मन्दिर जाये, दर्शन आदि क्रिया करने के बाद वेदी पर पद्मप्रभ तीर्थंकर व कुसुमवर यक्ष व मनोवेगा यक्षी सहित प्रतिमा स्थापित कर पंचामृताभिषेक करे | भगवान के सामने एक पाटे पर ६ स्वस्तिक निकाले, उस पर भ्रष्टद्रव्य रखे । फिर वृषभनाथ तोर्थंकर से पद्मप्रभु तीर्थंकर तक पूजा करे | पंच पकवान का नैवेद्य बनावे । श्रुतं व गुरु की अर्चना करे । फिर यक्षयक्षी व ब्रह्मदेव की अर्चना करे | जाप :- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रीं श्री पद्मप्रभु तीर्थंकराय कुसुमवर मनोवेगा यक्षयक्षी सहिताय नमः स्वाहा " इस मन्त्र का १०८ बार पुष्पों से जाप करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप करे | श्री जिन सहस्रनाम व श्री पद्मप्रभ तीर्थंकर चरित्र पढ़े । यह कथा पढ़े भारती करे । सत्पात्र को दान दे, दूसरे दिन पूजा व दान देकर पारणा करे ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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