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व्रत कथा कोष
इस प्रकार इस व्रत को सताईस बार उपरोक्त तिथि को पूजा कर उपवास करे, अंत में उद्यापन करे, उद्यापन के समय, महाभिषेक करके एक नवीन पंचपरमेष्ठि भगवान की मूर्ति की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा करे, चतुर्विध संघ को दान देवे।
कथा में राजा श्रेणिक और चेलना का चारित्र पढ़े।
चंदनादेवी व्रत कथा चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को एकाशन करके चतुर्दशी को शुद्ध होकर मन्दिर जी में जावे, तीन प्रदक्षिणा पूर्वक भगवान को नमस्कार करे, वर्द्धमान तीर्थंकर का पंचामृताभिषेक करे, अष्टद्रव्य से पूजा करे, श्रुत व गणधर व यक्षयक्षि क्षेत्रपाल की पूजा करे।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं वर्धमान तीर्थंकराय मातंगयक्ष सिद्धायिनीयक्षी सहिताय नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र से १०८ पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, एक पूर्ण अर्घ्य आरती पूर्वक चढ़ावे, सत्पात्रों को दान देवे, उस दिन उपवास करे, दूसरे दिन पूजा व दान देकर स्वयं पारणा करे, तीन दिन ब्रह्मचर्य का पालन करे, दीप जलावे, एक पाटे पर सात पान लगाकर ऊपर अष्ट द्रव्य व भीगे हुये चने व नैवेद्य चढ़ावे, इस प्रकार महिने की उसी तिथि को व्रत पूजा करे, इस प्रकार १४ व्रत पूजा पूर्ण होने पर कार्तिक अष्टान्हिका में इस व्रत का उद्यापन करे, उस समय वर्द्धमान तीर्थंकर का विधान करके महाभिषेक कर, चतुर्विध संघ को आहारदान देवे।
कथा
राजा श्रेणिक रानी चेलना की कथा पढ़े ।
इस व्रत को चंदना ने किया था। उसके प्रभाव से समवशरण में गणिनी बनकर, व्रत तप के प्रभाव से स्त्रीलिंग का छेदकर स्वर्ग में इन्द्र हुई।