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________________ व्रत कथा कोष [ २६१ से तीसरे भव में विदेह क्षेत्र की विजयापुरी नगरी में धनंजय राजा के चंद्रभानु नाम का तीर्थंकर पुत्र हुआ और पंचकल्याणक प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त किया। चारित्र्यशुद्धि व्रत को व्यवस्था चारित्र्यशुद्धौ दशशतचत्वारिंशदुपवासाः सूत्रक्रमेण हिंसादि पापानां त्यागश्च कार्यः । इदं षडवर्षकाले परिपूर्ण भवति । __अर्थ :-चारित्र्यशुद्धि व्रत १०४२ उपवास का होता है । इस व्रत में उपवास के दिन हिंसादि पापों का प्रतीचार सहित त्याग करना चाहिए । ६ वर्ष में यह व्रत पूरा होता है । इसमें एक उपवास पश्चात् एक पारणा, पुनः एक उपवास, पश्चात् पारणा इस प्रकार उपवास और पारणा के क्रम से २०८४ दिनों में परिपूर्ण होता है। चारित्रमाला व्रत कथा आश्विन शुक्ल पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल व्रतिक स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनकर पूजा सामग्री लेकर जिनमन्दिर जी में जावे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर ईर्यापथ शुद्धि करे, भगवान को साष्टांग नमस्कार करे, अभिषेक पीठ पर पंचपरमेष्ठि भगबान की मूर्ति स्थापन कर पंचामृताभिषेक करे, वेदीमण्डप को सजाकर वेदी के ऊपर अष्टदल कमल पचरंग के चूड़ों से निकाले, मण्डल पर आठों दिशाओं में कुम्भ कलश रखे, पंचवर्णसूत्र को मण्डल पर लपेटे, मध्य में एक कुम्भ कलश सजाकर रखे, उसके ऊपर एक थाली रखे, उस थाली में पांच पान रखे, ऊपर अष्टद्रव्य रखे, बीच थाली में पंचपरमेष्ठि भगवान की मूर्ति स्थापित करे, नित्यपूजा करके पंचपरमेष्ठि विधान करे, इस प्रकार चार बार अभिषेक पूजा विधि करे । ॐ ह्रीं अहँ अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यो नमः स्वाहा । इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, व्रत कथा पढ़े, एक थाली में महाअर्घ्य रखकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारे, अर्घ्य चढ़ा देवे, उस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करे, उपवास करे, दूसरे दिन मुनिराजों को दान देकर स्वयं पारणा करे ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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