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________________ २५८ ] व्रत कथा कोष तीन चौबीसी व्रत दोहा-व्रत चौबीसी तीन को, सुकल भाद्रपद तीज । प्रोषध कीजे शीलयुत, सुर शिव सुख को दोज । कि. सि० कि० भावार्थ :-यह व्रत भाद्रपद कृष्ण तृतीया के दिन किया जाता है । प्रति वर्ष इस दिन उपवास करे । नमस्कार मन्त्र का त्रिकाल जाप्य करे । तीन वर्ष पूर्ण होने पर उद्यापन करे। तीर्थकरबेला व्रत दोहा-ऋषभ आदि तीर्थेश के, बेला बीस रु चार । पाठे चौदशि कीजिये, अंतर मूर न पार ॥ चौपाई-सातें पाठे बेला ठान, नोमी दिवस पारणो जान । तेरस चौदस द्वय उपवास, मावस पून्यो भोजन तास । प्रवे पारणे की विधि जिसी, सुनी बखानत हों मैं तिसी। बेला प्रथम पारणो येह, तीन अंजुली शर्बत लेय । अरु तेबीस पारणे जान, तीन अंजुली दूध बखान । इम बेला कीजे चौबीस, तिनत फल प्रति लेह गिरीश । -कि० सि० कि० भावार्थ :-यह व्रत ६ महिने में पूर्ण होता है जिसमें २४ बेला और २४ पारणा होते हैं (१) ऋषभनाथ का बेला :-सप्तमी, अष्टमी का उपवास और नोमी को तीन अंजुली शर्बत का पारणा । __ (२) अजितनाथ का बेला :- त्रयोदशी और चतुर्दशी का उपवास और पूर्णिमा को ३ अंजुली दूध का पारणा ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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