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________________ २५६ ] व्रत कथा कोष ष्टमी व्रत दोहा - प्रष्ट मिगंध त्रिशत बावन्न, द्वय सौ अट्ठासी प्रोषध मन्न । समकित सहित धरे व्रत जास, करें पारने घोंसट तास || ( वर्धमान पुराण ) भावार्थ :- यह व्रत ३५२ दिन में पूरा होता है, जिसमें दो सौ अट्ठासी उपवास और ६४ पारणे होते हैं । व्रत पूर्ण करने पर उद्यापन करे और नमस्कार मंत्र का त्रिकाल जाप्य करे । गोत्रकर्म निवारण व्रत कथा इसकी विधि भी उपरोक्त कर्मानुसार है, अषाढ़ शुक्ल ६ को एकाशन करे, सप्तमी को उपवास करे, सुपार्श्व तीर्थंकर की पूजा करे, मंत्र जाप्य भी उसी प्रकार करे, कथा वगैरह पूर्ववत् पढ़े । चौंतीस प्रतिशय व्रत दोहा - श्रतिशय लख चौंतीस व्रत, तासु तनो कछु भेद । कथा मांहि सुनियों जिसो, किये होय दुखछेद || कही 1 गही । डिल्ल - दश दशमी जनमत के अतिशय दश तनी । फिर दश केवल ज्ञान ऊपजे दश भनी । चौदशि चौदा अतिशय देवाकृत चार चतुष्टय चौथ चार ये विध षोड़श श्राठें प्रातिहार्य वसुको जारण पांच की पांचे पांच कही गती । अरू षष्टी छह लही सवे प्रोषध पाँच अधिक गन साठ कियें फल बहु सुनो " मुनो । भनी, - कि० सिं० क्रि० भावार्थ : - यह व्रत २ वर्ष ८ महोना और १५ दिन में समाप्त होता है, जिसमें ६५ उपवास होते हैं । यथा
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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