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________________ २४८ ] व्रत कथा कोष हए और चन्द्राभ को राज-सिंहासन पर बैठाकर राज्याभिषेक कर दिया। राजा चन्द्राभ भी राज्य प्राप्त होने के बाद न्यायनीति से राज्य करने लगा। ___कुछ काल के बाद अपने पूर्व राज्य के ऊपर चढ़ाई करके कालयवन को हराकर अपना राज्य प्राप्त किया और सुख से रहने लगा, गणधरवलय व्रत को और भी अच्छी तरह से पालन करने लगा, व्रत के पूर्ण होने पर उद्यापन किया । अन्त में समाधिमरण कर स्वर्ग में देव हुआ और सुख से वहां पर रहने लगा । वहां की आयु पूर्ण कर वह देव, जम्बूद्वीप के अपर विदेह में सीता नदी के किनारे दक्षिण तट पर पद्म देश में सिंहपुरी नामक सुन्दर नगर है, उस नगर में पुरुषदत्त राजा की रानी विमलमति के गर्भ में आया । जन्मते ही उसका नाम अपराजित रखा, पुत्र के बड़े होने पर राज्य भार पुत्र के शिर पर रखकर राजा ने दीक्षा ले लो। कर्म काटर मोक्ष को गया । इधर अपराजित राजा ने भी बहुत काल तक राजसुख भोगकर अन्त में राज्य का त्यागकर विमलवाहन केवली के पास जाकर दीक्षा ले ली और घोर तपश्चरण कर केवली का गणधर बना, अन्त में मोक्ष को गया। गुरुद्वादशी व्रत कथा आषाढ़ शुक्ल ११ के दिन शुद्ध हो मन्दिर में जाकर जिनेन्द्र श्री वासुपूज्य की यक्षयक्षि सहित मूर्ति लेकर पंचामृताभिषेक करे, अष्ट द्रव्य से पूजा करे, श्रत व गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षि व क्षेत्रपाल की पूजा करे। .. - ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं प्रहं वासुपुज्य तीर्थकराय षणमुखयक्ष गांधारी यक्षी सहिताय नमः स्वाहा। इस मन्त्र को १०८ पुष्प से जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, व्रत कथा पढ़, एक महामर्थ्य हाथ में लेकर मंदिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारे, उस दिन ब्रह्मचर्यपूर्वक रहे, उपवास करे, दूसरे दिन पजा स्नान करके पारणा करे । इस प्रकार बारह द्वादशी पूजा करे, अंत में उद्यापन करे, उस समय वासुपूज्य भगवान का महाभिषेक करके विधान करे, पहले तीर्थंकर
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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