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व्रत कथा कोष
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से वासुपूज्य तीर्थंकर तक अलग २ अष्टद्रव्य से पूजा करे, बारह प्रकार का नैवेद्य चढ़ावे, बारह मुनिश्वर को आहारदान देवे, चतुर्विध संघ को दान देवे, स्वयं पारणा करे।
कथा __ इस भरतक्षेत्र के विजयार्ध पर्वत पर रत्नसंचय नगर का राजा सिंहसेन अपनी रानी सुन्दरादेवी के साथ सिद्धकूट पर सहस्रकूट चैत्यालय का दर्शन करने गया था। दर्शन कर वापस लौटते समय रास्ते में अजितञ्जय व अरिंजय नामक मुनिराज मिले । राजा मुनिराज के दर्शन कर हाथ जोड़कर कहने लगा कि गुरुदेव ! मुझे कोई व्रत प्रदान करिये । तब मुनिराज ने उसको गुरुद्वादशी व्रत की विधि बतलायी, उसने व्रत को प्रसन्नता से स्वीकार किया, और नगर में वापस लौट पाया। व्रत को अच्छी तरह से पालन किया और अंत में व्रत का उद्यापन किया, फिर संन्यास विधि से मरकर स्वर्ग में देव हुये ।
गौरी व्रत कथा श्रेयोजिनेन्द्र चंद्रस्य, चरणांभोरुह द्वयं ।
नत्वा गौरीकथां वक्ष्ये, शुभ सौभाग्यदायिनी ॥
भाद्रपद शुक्ल तृतीया के दिन व्रतीक प्रात:काल में स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहन कर अपने हाथ में पूजा सामग्री लेकर जिन मंदिर में जावे, ईर्यापथ शुद्धि पूर्वक मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा देते हुये भगवान का भक्ति पूर्वक दर्शन करे, सिंहासन पीठ पर श्रेयांस भगवान की मूर्ति कुमार यक्ष गौरी यक्षी सहित स्थापन कर पंचामृताभिषेक करे, एक पाटे पर सोलह पान रखकर क्रमशः प्रष्ट द्रव्य प्रत्येक पान पर रखे, केले रखे, तिल के लड्डू, चावल के आटे का लड्डू, भिगो कर फुलाए हुये चने, नारियल आदि रखकर, आदिनाथ तीर्थंकर से लेकर सोलहवें शांतिनाथ तक प्रत्येक तीर्थंकर की अलगअलग पूजा करे (प्रत्येक की अलग-अलग अष्टद्रव्य से पूजा, जयमाला, प्रत्येक के स्तोत्र पढ़े) अनन्तर जिनवाणी पूजा, गुरुपूजा करना, कुमार यक्ष, गौरी यक्षी की व क्षेत्रपाल को योग्यतानुसार अर्घ्य देवे
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं श्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय कुमार यक्ष गौरी यक्षी सहिताय नमः स्वाहा ।