________________
प्रत कथा कोष
। २४७
आसक्त हो गया और पाप करने लगा एक दिन कुछ दुर्जनों के साथ शिकार खेलने को जंगल में गया, वहां एक पेड़ के नीचे अभयघोस नामक मुनिराज को उसने देखा, देखते ही दोष से उन मुनिराज के ऊपर उपसर्ग करने लगा। उसने ससझा कि यह मुनि मेरे शिकार में बाधक बनेगा, इसलिए उन मुनिराज को वहां से जबरदस्ती उठाकर अन्यत्र भेज दिया।
___ उस पाप के उदय से कलिंग देश के राजा कालयवन ने आकर चन्द्राभ के ऊपर आक्रमण कर दिया और राज्य को अपने हाथ में लेकर चन्द्राभ को उस राज्य से उसकी पत्नी सहित भगा दिया । चन्द्राभ वहां से निकलकर मलयाचल पर्वत की एक गुफा में छुप कर बैठ गया। उस गुफा में युगंधर नामक मुनिराज ध्यानस्थ बैठे थे, चन्द्राभकुमार ने और उसकी पत्नी ने मुनिराज को देखा, दोनों ही मुनिराज के पास जाकर विनय से बैठ गये और हाथ जोड़कर विनय करने लगे। जब मुनिराज ने ध्यान छोड़ा तब राजा कहने लगा हे मुनिराज ! मेरी प्रार्थना यह है कि मेरा राज्य मेरे हाथ से निकल गया, सो कौनसे पाप के कारण राज्य गया ?
___ तब मुनिराज ने देखा कि राजा अत्यन्त विनय से प्रश्न कर रहा है । तब मुनिराज कहने लगे कि हे राजन तुमने अभयघोस मुनिराज को जबरदस्ती तिरस्कार करके निकाल दिया था। उसी पाप के कारण तुम भो राज्य-च्युत हुए हो और यह विकट स्थिति तुम्हारे सामने आई है। तब चन्द्राभ राजा को अपने किये पर बहुत पश्चाताप हुआ और वह मुनिराज के चरणों में पड़कर अपने पापों के उद्धार का कारण पूछने लगा।
तब मुनिराज करुणाबुद्धि से उसको संबोधित करते हुए कहने लगे कि राजन ! तुम पापों को दूर करने के लिए गणधरवलय व्रत करो और उसकी विधि भी कह सुनाई, तब राजा ने संतुष्ट होकर उस व्रत को स्वीकार किया । अन्त में वह राजा अपनी पत्नी सहित अपने ससुराल में वापस आ गया। ब्रत का अच्छी तरह से पालन करने लगा। इतने में मलयाचल प्रदेश का राजा स्वर्गस्थ हो गया, उसको कोई संतान नहीं थी । मन्त्रिमण्डल ने विचारकर अपने राजा का पट्ट हाथी छोड़ा। वह हाथी घूमता हुया चंद्राभ के पास आया और उसफा अभिषेक करके अपने ऊपर बैठा कर नगर में ले आया। नगरवासी नवीन राजा की प्राप्ति से बहुत खुश