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व्रतों की विधिपूर्वक क्रिया, पापनाशक, ग्रहशांति कर, पुण्यवर्द्धक, अभीष्ट साधक है प्राचार्य वसुनंदि ने श्रावकाचार में कहा है-जिनगुण सम्पत्ति, षोड़शकारण, रत्नत्रय, नंदीश्वर पति, विमानपंति आदि के द्वारा यह मानव, देव, स्वर्ग-भोगों को भोगकर, मानव पर्याय में तपध्यान से मोक्षपद प्राप्त करता है यथार्थ में व्रत रहित मानव पशु तुल्य ही है।
व्रतों के प्रमुख भेद :-१ सावधीनि २ निरवधीनि ३ देवसिक ४ नैशिक ५ मासावधि ६ वर्षावधि ७ काम्य, ८ अकाम्य ६ उत्तमार्थ हैं।
निरवधि व्रतों में :-कवलचंद्रायण, तपोजलि, जिनमुखावलोकन, मुक्तावली, द्विकावली एकावली है।
सावधि व्रत :-तिथि की अवधि में किये जाते हैं-सचितामणिभावना, पंचविंशतिभावना, द्वात्रिंशतभावना सम्यक्त्व पचविंशतिभावना और णमोकार पंचत्रिंशत भावना मादि है।
दिनों की अवधि से किये जाने वाले व्रतों में दुःख हरण व्रत, धर्म चक्रव्रत, जिनगुण सम्पत्ति सुख सम्पत्ति, शीलकल्याणक, श्रुतिकल्याणक, चंद्र कल्याणक है।
देवसिक व्रतों में :-दिनों की प्रधानता रहती है-अष्टमी, चतुर्दशी रत्नत्रय-दशलक्षण दैवसिक व्रत हैं आकाश पचमी व्रत नैशिक व्रतों में आता है । षोड़शकारण, मेघमाला आदि मासिक व्रत कहलाते हैं । जो व्रत किसी फल की कामना से किये जाते हैं हैं वे काम्यया अभीष्ट है। जो निष्काम किये जाते हैं वे प्रकाम्य हैं।
व्रतों का विकास :-प्रारंभ में व्रत थोड़े थे, प्राचीन शास्त्रों में मूलगण-बारह व्रत, ग्यारह प्रतिमा संल्लेखना व्रतों का उल्लेख है, किन्तु हरिवंश पुराण, अन्य शास्त्रों में इनके विविध रूप, भेद और विस्तृत उल्लेख हैं व्रत-कर्मों की निर्जरा करते हैं। प्रास्रव को रोकते हैं । तपपूर्ण, ध्यानसिद्धि और आत्मानंद देते हैं जैसा कि पूर्व में कहा है-नवीन वर्षारंभ-वीरशासन जयंति से होता हैं- अत: श्रावण मास में वीरशासन जयंति, अक्षय निधि, गरूड़ पंचमी, मोक्ष सप्तमी, अक्षय फल दसवीं, द्वादशी, रक्षा बंधन मनायें।
अक्षय निधि व्रत :-श्रावण शुक्ला नवमीं को ब्रह्मचर्य, जिनपूजा, उपवास, दान, गुरु सेवा स्वाध्याय पूर्वक रात्रि जागरण सहित करना होता है। त्रिकाल णमोकार की ११ मालाएं एवं अओं ह्रीं वृषभजिनाय नमः । पूर्वक जाप जरूरी है। मोक्ष सप्तमी को ओं ह्रीं पार्श्वनाथाय नम : । का त्रिकाल जाप करें । गरुड पंचमी को ओं ह्रीं अहंदभ्यो नम: के जाप का विधान है। मनोकामना सिद्धि के लिए श्रावण शुक्ला षष्ठी व्रत का विधान है। - ..
इसमें मन्त्र प्रों ह्रीं श्री नेमिनाथाय नमः जपे एवं कल्याण मन्दिर स्तोत्र का पाठ करें अष्टमी और चतुर्दशी पर्व तिथियां-ये जया, है एवं रिक्त को पूर्ण करती है।