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________________ आदि ७०१ मुनियों की रक्षा-कथा-श्रावण शुक्ला पूर्णिमा-श्रवण नक्षत्र उदया तिथि में ही मनाने का विधान है, एवं पूजन-हवन-पूर्वक यज्ञोपवीत धारण को कहा गया है एवं तीनों कालों में ओं ह्रों अहं श्री चन्द्रप्रभु जिनाय कर्म भस्म विधूननं सर्व शांति वात्सल्योपवर्द्धनं कुरु कुरु स्वाहा।" का जाप करना चाहिए। __यह एक अनाज के भोजन से, पाठ वर्षों तक करके उद्यापन पूर्वक पूर्ण करें इसी दिन श्रेयांसनाथ भगवान का निर्वाण भी हुअा था। इसी प्रकार वासुपूज्य स्वामी का निर्वाण दिवस भी फाल्गुन शुक्ला पूर्णिमा को मध्याह्न के समय ही "तिलोयपण्णती के अनुसार मनावें । भगवान महावीर का निर्वाणोत्सव कार्तिक कृष्णा अमावस्या को एवं स्वाती नक्षत्र में हो मनाया जाना चाहिए। दीपावली पूजा-लक्ष्मी पूजन-शुद्ध अष्ट द्रव्य मंगल कलश, नारिकेल, गणेश, सरस्वती, चित्र, स्वस्तिक, नवीन केशरिया, गुलाबी, श्वेत वस्त्र, एवं बहोखाते-रुपयों को थैली, देवशास्त्र गुरु अर्ध्य, परमेष्ठि पूजन, नवदेव गणधर गणेश पूजन पूर्वक शुद्ध धोती कुरते में करे बहियों पर श्री ऋषभाय नमः, श्री महावीराय नमः, श्री गौतम गणधराय नमः श्री केवलज्ञान सरस्वत्यै नमः श्री लक्ष्म्यै नमः श्री वर्द्धताम् पूर्वक करना चाहिए दीपक ही जलावें- फटाके बारूद आदि का प्रयोग जीवनाशक है अतः त्याज्य है । फल सूखे मेवे काजू, किसमिस, नारियल एवं ऋतु फल ताजे, शुद्ध, जीवरहित बांटना ही पुण्यकारक लक्ष्मीवर्द्धक है। भगवान ऋषभदेव का निर्वाण महोत्सव माघ कृष्णा चतुर्दशी उत्तराषाढ़ा नक्षत्र क चौथे चरण में ही मनाना चाहिए-इसी समय अभिजित मुहूर्त भी प्राप्त हो जाता है, जो सभी शास्त्रों पुराणों द्वारा सर्व सम्मत है । महावीर जयंती :-चैत्र शुक्ला त्रयोदशी उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र कन्या र शि-मकर लग्न में मनाना चाहिए । वैशाख शुक्ला तृतीया अक्षय तृतीया कहलाती है इस दिन हस्तिनापुर के राजा श्रेयांस ने भगवान आदिनाथ को इक्ष रस का आहार देकर अपने जीवन का धन्य किया, इक्षु रस का भोजन अक्षय स्वास्थ्य हृदय पूष्टिकारक अमत है इस दिन उदया तिाथ प्रातःकाल में ही सभी पूजा-पाठ-दान-धर्म आदि करना विशेष श्रेयस्कर है। श्रत पंचमी :- ज्येष्ट शुक्ला पंचमी को षट् खण्डागम का प्रणयन हुआ, चतुविध संघ ने पागम शास्त्रों की पूजा की उत्सव मनाया, यह जिनवाणी दिवस है-धरसेन के शिष्य भूतबलि और पुष्पदंत ने शास्त्र रचना की एवं भूतबलि ने इस दिन पूर्ण किया, इस दिन श्रु त पूजा के साथ सिद्ध भक्ति, श्रु तभक्ति, शांतिभक्ति पाठ के साथ १०८ मन्त्राहुति भी देना चाहिए। ___ मानव जीवन शोधन के लिए व्रत जरूरी है समस्त श्रावकाचार और मुन्याचार व्रत रूप ही है । सागर धर्मामृत में- अध्याय-2 ' संकल्प पूर्वक ; सेव्यो नियमोऽशुभकर्मण। निर्वृत्तिवा व्रतं स्याद्वा प्रवृति शुभकर्मणि ।" सेवनीय विषयों का संकल्प करना, हिंसादि व्रतों का त्याग करना, शुभ प्रवृत्तियों में प्रवृति, पात्रों को दान देना-ही व्रत है ।" रत्नत्रय, दशलक्षण अष्टान्हिका, षोड़शकारण, मुक्तावली, पुष्पाञ्जलि, रविव्रत सुगन्धदशमी मादि
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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