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________________ प्रस्तावना व्रत पर्व और त्यौहार संस्कृति के थर्मामीटर हैं । भारतीय चिंतन में संस्कृति को मानव जीवन का नवनीत और सभ्यता को परिधान कहा गया है । व्रत जीवन को पवित्रता प्रदान करते हैं । व्रतों से अपने पापों का प्रायश्चित आत्मा की शुद्धि, विचारों में विशालता, मन में पवित्रता हृदय में करूणा, वात्सल्य और अहिंसाभाव जागृत होता है, लौकिक अभ्युदय की उपलब्धि तथा प्रगति और प्रेरणा के लिए सभी देशों, सभी धर्मो और सभी जातियों में व्रतों का महत्वपूर्ण स्थान है। विधि पूर्वक यथासमय किये गए व्रत इच्छित फलदाता होते हैं एवं सरस कथाए मानव जीवन में साहस-धैर्य-मनोरंजन के साथ-साथ जीवन को प्रेरणादायक संबल प्रदान करती है । वैदिक साहित्य के "निर्णयसिंध' ग्रंथ में-व्रतों के नक्षत्र, तिथि, विधि, हवन, जाप, कर्मकाण्ड दान, एवं सभी प्रावश्यक विषयों का विशद विवेचन है । दीपमालिका, रक्षाबंधन, विजयादशमी होलिकादहनत्यौहार और व्रत दोनों रूपों में प्रचलित है । नवरात्रि, गणेशचतुर्थी, शिवरात्रि, अनंत चतुर्दशी, डोलग्यारस, रामनवमी, जन्माष्टमी, महावीरजयंती, क्रिसमसडे, गुडफ्रायडे प्रोनम् के पर्व-त्यौहारों पर श्रद्धालु धार्मिक जन केवल व्रत-उपवास, फलाहार त्याग, दान, संयम पूर्वक पूजा अर्चना, देवदर्शन और गुरु सेवा ही नहीं करते अपितु अपने निवास, भवन, संस्थान,-देवालयों पूजाग्रहों को साफ स्वच्छ कर आकर्षक साज सज्जा से अलंकृतकर दर्शनीय, मोहक और प्रभावशाली भी बनाते हैं, एवं तत्सम्बन्धी-कथा कीर्तन, भजन, प्रदर्शनी और चल समारोहों का आयोजन कर अपनी भावना का वृहद प्रदर्शन कर अपने को धन्य एवं गौरवान्वित भी अनुभव करते हैं । धवलाटीका, त्रिलोकसार, लौकिक्तिता, धार्मिक ग्रंथों के अलावा ज्योतिष्करण्डक, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, प्रभति ग्रंथों में नवीन वर्षारंभ श्रावण कृष्णा प्रतिपदा को माना गया है। उसी दिन प्रभु महावीर की प्रथम दिव्यध्वनि खिरी थी । कालचक्र उत्सपिणी अवसर्पिणी युग का प्रारम्भ भो इसी तिथि से, तथा युग की समाप्ति प्राषाढ़ शुक्ला पूणिमा-गुरु पूर्णिमा को माना गया है । श्रावण कृष्ण प्रतिपदा को अभिजित नक्षत्र वालवकरण-रौद्र मुहूर्त में युगारम्भ हुआ-देखें-तिलोयपण्णती १/७० । धवला और तिलोयपण्णति में अबसपिणी के चतुर्थकाल के प्रतिम भाग में ३३ बर्ष ८ माह १५ दिन शेष रहने पर श्रावण नामक प्रथम माह में कृष्ण पक्ष प्रतिपदा के दिन अभिजित नक्षत्र में धर्मतीर्थ की उत्पत्ति हुई. अतः उत्तराषाढ़ा नक्षत्र की प्रतिम १५ घटियों तथा श्रवण नक्षत्र की प्रादि को ४ घटियों में अभिजित नक्षत्र होता है, तभी वीर शासन जयंति मनाना चाहिए। इसी प्रकार श्रावण शुक्ला सप्तमी प्रातःकाल विशाखा नक्षत्र में ही भगवान पार्श्वनाथ का निर्वाणोत्सव मनाना चाहिए । तथैव हरिवंश पुराण के बीसवें सर्ग में विष्णु कुमार
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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