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व्रत कथा कोष
कुटी की तीन प्रदक्षिणा देकर मनुष्यों के कोठे में जाकर बैठ गये । कुछ समय भगवान का उपदेश सुनकर हाथ जोड़ नमस्कार करते हुए कहने लगा कि हे भगवन हमारी आयुधशाला में चक्ररत्न उत्पन्न हुआ है सो क्या कारण है ?
तब भगवान कहने लगे कि हे राजन ! आपने पूर्व भव में केवलज्ञान व्रत यथाविधि पाला था, उसके पुण्य से अाज अापको चक्ररत्न की प्राप्ति हुई है। ऐसा सुनते ही राजा को बहुत प्रानन्द हुआ और केवलज्ञान व्रत की विधि क्या है, पुनः विचार करने लगा । भगवान ने राजा को सब विधि कह सुनाई, राजा ने अत्यन्त हर्णपूर्वक पुनः उस व्रत को स्वीकार किया और नगर को वापस चला पाया। आगे कालानुसार व्रत को पूर्ण करके व्रत का उद्यापन किया । इस व्रत के प्रभाव से बहुत दिनों तक चक्रवर्ती की विभूति का सुख भोगकर अन्त में जिनदीक्षा ग्रहण की और घोर तपश्चरण करके मोक्ष गये । इस प्रकार इस व्रत की विधि है।
कृष्णदेवकी व्रत अथवा संतानरक्षा व्रतकथा श्रावण शुक्ल एकादशी को स्नान कर शुद्ध हो शुद्ध वस्त्र पहन कर जिनमन्दिर में जाकर वासुपूज्य भगवान की यक्षयक्षि सहित प्रतिमा स्थापित कर पंचामताभिषेक करे, आदिनाथ से वासुपूज्य तक प्रत्येक तीर्थंकर की अलग-अलग पूजा करे। इसमें बारह प्रकार का नैवेद्य चढ़ावे ।
____ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं वासुपूज्य तीर्थंकराय यक्षयक्षि सहिताय नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र का १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, जाप्य में सुवर्ण पुष्प चढ़ावे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, एक महाअर्घ्य थाली में लेकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारे, अर्घ्य चढ़ा देवे, उस दिन उपवास करे, ब्रचार्य से रहे, दूसरे दिन चतुर्विध संघ को दान देवे, फिर स्वयं पारणा करे, अंत में उद्यापन करे, उस समय वासुपूज्य भगवान का विधान करे, बारह प्रकार का नैवेद्य चढावे, मन्दिर में उपकरण देवे, चतुविध संघ को माहारादि तथा उपकरण दान करे।
कथा
इस व्रत की कथा में कृष्ण के जन्म से लेकर गोकूल में बाल-लीला तक