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________________ व्रत कथा कोष [ २१५ इसी विधिक्रम से कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन भी पूजा करे, इस प्रकार नौ चतुर्दशी तक यह व्रत की विधि करना है, अन्त में कार्तिक मास की शुक्ला चतुर्दशी के दिन व्रत का उद्यापन करना है, भगवान का नौ कलशों से महाभिषेक पूजा करके पहले के समान ही प्रष्ट द्रव्य से पूजा करे, अन्त में एक महाअर्घ्य की थाली में रखे । उस अर्घ्य के साथ एक सोने का पुष्प बनवा कर रखे, अर्ध्य को थाली हाथ में लेकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल भारती उतारे, अर्घ्य भगवान को चढ़ा कर पूजा विसर्जन करे, चार महिने तक भगवान का क्षोर (दूध) से अभिषेक नित्य करे, प्रत्येक चतुर्दशी को उपवास करे, चतुविध संघ को माहारदान देकर स्वयं पारणा करना । इस प्रकार व्रत की पूर्ण विधि है । कथा इस जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में पुष्कलावती नाम का एक बहुत बड़ा देश । उसके अन्दर पुष्कररण नाम का एक अत्यन्त रमणीय नगर है, वहां पहले यशोधर नाम का एक बलवान राजा अपनी यशोमती रानी तथा वज्रदंत पुत्रादिक के साथ में श्रत्यन्त सुख से राज्य करता था। जब राजपुत्र यौवनावस्था को प्राप्त हुआ तब चौंसठ कलाओं में अत्यन्त निपुण हो गया । एक दिन धनपालक ने राजा को एक कमल पुष्प लाकर दिया । राजा ने कमल को देखा, उस कमल में एक काला भ्रमर मरा हुआ था, मरे हुए भ्रमर को देखकर राजा को वैराग्य उत्पन्न हो गया । अपने पुत्र वज्रदंत को राज्य सिंहासन पर बैठाकर धन में गया और वहां एक निर्ग्रन्थ मुनिश्वर के पास जिनदीक्षा को ग्रहण कर लिया और घोर तपश्चरण करके घातिया कर्मों का नाश कर केवलज्ञान को प्राप्त कर लिया । इन्द्र ने गंधकुटी की रचना को, देब लोगों ने प्राकर भक्ति उत्साह से ज्ञानोत्सव मनाया । इधर वज्रदंत की प्रयुधशाला में चक्ररत्न उत्पन्न हुआ, पिता को केवल - ज्ञान उत्पन्न हुआ । यह दोनों ही समाचार एक साथ सुनकर राजा को बहुत श्रानन्द हुआ । सिंहासन से नीचे उतर कर सात पेंड जा भगवान को नमस्कार किया, पुरजनपरिजन साथ में लेकर पैदल ही भगवान के दर्शन के लिए गया । बहां जाकर गंध
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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