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________________ २१४ ] व्रत कथा कोष के भीतर किये जाते हैं। व्रत के दिनों में सिद्ध भगवान की पूजा की जाती है तथा 'ॐ ह्रीं समस्त कर्मरहिताय सिद्धाय नमः" अथवा "ॐ ह्रीं सम्यग्दर्शनज्ञान चारित्रतपसे नमः' मन्त्र का जाप व्रत के दिनों में तीन बार करना होता है। नित्यपूजा, चतुर्विशतिजिनपूजा, विशेषतः सिद्धपूजा के अनन्तर ____ "ॐ ह्रीं सामग्री विशेषविश्लेषिताशेष कर्ममल कलंकतयासांसिद्धि कात्या न्तिक विशुद्ध विशेषाविर्भावादभिव्यक्त परमोत्कृष्ट सम्यक्त्वादि गुणाष्टक विशिष्टाम् उदितोदितस्वपरप्रकाशात्मकचिच्चमत्कार मात्र पर मन्त्र परमानन्दैकमयीं निष्पीतानन्तपर्यायतयेक किञ्चिदनवरतास्वाहामा नलोकोत्तरपरममधुरस्वरसभरनिर्भर कौटस्थमधिष्ठितां परमात्मनामासंसारमनासादितपूर्वामपुनरावृत्त्याधितिष्ठतां मङगललोकोत्तमशरणभूतानां सिद्धपरमेष्ठिनां स्तवनं करोमि ।" मन्त्र को पढ़ दोनों हाथों से पुष्पों की वर्षा करते हुए सिद्ध परमेष्ठी की स्तुति करनी चाहिए। केवलज्ञान व्रत कथा आषाढ़ शुक्ल चतुर्दशी के दिन स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहन कर हाथ में पूजाभिषेक का सामान लेकर मन्दिर में जावे, वहां मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे ईर्यापथ शुद्धि क्रिया करके, जिनेन्द्र भगवान को नमस्कार करे, अभिषेक पीठ पर चौबीस तीर्थंकर की प्रतिमा यक्षयक्षि सहित स्थापना करके पंचामृताभिषेक करे । अष्टद्रव्य से पूजा करे, जिनवाणी, गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षिणी व क्षेत्रपाल की यथायोग्य पूजा सम्मान करे। जिनेन्द्र भगवान के सामने नौ अक्षत के पुञ्ज रखकर नौ प्रकार का उन पुञ्जों पर नैवेद्य रखे, सुगंधित फूलों को माला भगवान के चरणों में चढ़ावे । ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं चतुर्विशति तीर्थकरेभ्यो यक्षयक्षि सहितेभ्यो नमः । स्वाहा । इस मन्त्र का १०८ सुगन्धित फूलों से जाप्य करे, जिनसहस्रनाम पढ़कर णमोकार मन्त्र की एक माला फेरे, यह व्रत कथा पढ़कर चौबीस तीर्थ कर का चरित्र अबश्य पढ़े।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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