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________________ व्रत कथा कोष [ २११ उपवास करे । सत्पात्र को दान दे । दूसरे दिन पूजा व दान देकर पारणा करे । इस प्रकार ५ तिथि पूर्ण होने पर उद्यापन करे | पंचपरमेष्ठी विधान करे । चतुः विध संघ को दान दे । करुणा दान दे । मन्दिर में आवश्यक उपकरण दे । कथा इस जम्बूद्वीप में पूर्व विदेह क्षेत्र के पुष्कलावती में पुंडरिकिणी नामक एक प्रत्यन्त रमणीय नगर है । वहां प्रजापाल नामक राजा राज्य करता था उसकी पत्नी गुणवती थी, उसके राज्य में कुबेरमित्र श्रेष्ठी था, उसके धनवती प्रादि ३० स्त्रियां थीं पर उसकी कोई सन्तान नहीं थी । इसलिए वह चिन्ताग्रस्त रहता था । एक दिन सर्वऋद्धिसंपन्न चारणमुनि चर्या के लिए आये तब कुबेर श्रेष्ठी नवधाभक्तिपूर्वक आहार दान दिया । आहार होने के बाद बाहर बैठे थे । तब धर्मोपदेश सुनने के बाद उन्होंने कहा मुझे पुत्ररत्न होगा कि नहीं ? मुनिराज बोलेअब तुम को बड़ा गुणशाली पुत्र उत्पन्न होने वाला है । तुम कुबेरकांत व्रत करो जिससे तुम्हारी सर्व इच्छा पूर्ण होगी । तब उसने यह व्रत लिया और यथाविधि पालन किया । -- इससे कुबेरमित्र श्रेष्ठी के बड़ा वैभवशाली पुत्र उत्पन्न हुआ । बहुत समय जाने के बाद संसार से वैराग्य हो गया जिससे जंगल में जाकर जिनेश्वरी दीक्षा धारण की । घोर तपश्चरण किया और समाधिपूर्वक शरीर छोड़ा जिससे स्वर्ग में महर्द्धिक देव हुआ। वहां वह बहुत सुख भोगकर मनुष्य पर्याय लेकर मोक्ष जायेगा । केवलबोध व्रत कथा भाद्रपद शुक्ला ११ के दिन प्रातः काल इस व्रत को पालन करने वाला स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहिन कर पूजा सामग्री को लेकर जिन मंदिर में जावे, ईर्याथ शुद्धिपूर्वक तीन प्रदक्षिणा देता हुआ नमस्कार करे, श्री अभिषेक पीठ पर पंचपरमेष्ठि की मूर्ति की स्थापना कर पंचामृत अभिषेक करे, अष्टद्रव्य से पूजा करे, जिनवाणी व गुरु की पूजा कर यक्षयक्षिणी व क्षेत्रपाल को अर्घ समर्पण करे। पांच पकवान का नैवेद्य चढ़ावे, केला, साकर, घी, दूध चढ़ावे |
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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