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व्रत कथा कोष
एक दिन राज घराने में चर्या के निमित्त से तपोनिधि मुनिराज आये, राजा नवधाभक्तिपूर्वक निरंतराय श्राहार कराया । श्राहार होने के बाद राजा ने कोई भी एक व्रत दो ऐसी प्रार्थना की । महाराज ने इस व्रत को करने के लिए कहा तथा उसकी विधि बतायी, महाराज तो वापस चले गये । राजा ने यथाविधि व्रत का पालन किया और राज्य सुख को भोगा ।
एक दिन राजा महल के ऊपर बैठा था तब उल्कापात हुआ जिसे देख - कर राजा को वैराग्य हो गया । तब अपने पुत्र को राज्य देकर श्री वृषसेन मुनि के पास दीक्षा ली । एक दशांगधारी हुये । षोडशकारण की भावना भाई जिससे तीर्थकर प्रकृति का बंध हुप्रा । वहां से समाधिपूर्वक मरण हुआ तो सर्वार्थसिद्धि में हमिन्द्र हुये । वहां की आयु पूर्ण कर के हस्तिनापुर में जन्म लिया । अनेक देवों ने पाँच कल्याणक मनाये ।
कामदेव चक्रवर्ती व तीर्थंकर पदवी के धारी हुए। ऐसे कुन्थुनाथ ने सुख से राज्य सुख को भोगा । एक दिन उनके मन में संसार से वैराग्य हो गया जिससे जंगल में जाकर दीक्षा लेकर घोर तपश्चरण किया जिससे केवलज्ञान को प्राप्ति हुई । पश्चात् देश विदेश में विहार कर धर्मोपदेश दिया, फिर सम्मेदशिखरजी जाकर योग निरोध किया और शुक्लध्यान के प्रभाव से सब कर्मों को नष्ट कर मोक्ष गये । यह इस व्रत का प्रभाव है ।
श्रथ कुबेर कति अथवा कुमारकति व्रत कथा
व्रत विधि :- १२ महिनों में से किसी भी महिने के शुक्ल पक्ष में १० मी के दिन एकाशन करे व ११ के दिन उपवास करे । प्रातःकाल स्वच्छ कपड़े पहन कर अष्टद्रव्य लेकर मन्दिर में जावे । पीठ पर पंचपरमेष्ठी प्रतिमा स्थापित करे । पंचामृत अभिषेक करे । भगवान के सामने एक पाटे पर स्वस्तिक निकाल कर उस पर पान व अष्टद्रव्य रखे। पंचपरमेष्ठी की पूजा अर्चना करे, श्रुत व गुरु की अर्चना करे, यक्षयक्षी व ब्रह्मदेव की अर्चना करे ।
जाप :- ॐ ह्रीं श्रीं प्रर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यो नमः स्वाहा |
इस मन्त्र का जाप करें । सहस्रनाम पढ़ े यह कथा पढ़ । श्रारती करे ।