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________________ व्रत कथा कोष - - [२०५ सुख से रहता था । उसको असुरकुमार नामक एक लड़का था, उसकी स्त्री सुरदेवी थी । इसके अलावा मन्त्री, पुरोहित, श्रेष्ठी, सेनापति प्रादि थे । वे सब सुख से अपना काल बिता रहे थे। एक दिन विद्यासागर नामक मुनिमहाराज आहार के निमित्त से पाये । विधिपूर्वक पड़गाहन आदि करके उन्है निरन्तराय आहार कराया। आहार के बाद राजा ने उन्हें एक आसन पर बिठाया और मुझे कोई व्रत दीजिये, इस प्रकार कहा । तब मुनि महाराजजी ने करकुच व्रत दिया और उसकी सब विधि बतायी । पश्चात् मुनि महाराज सबको आशीर्वाद देकर वन में चले गये। तब राजा ने अपने परिवार सहित यह व्रत किया जिससे उन्हे अनुक्रम से मोक्ष सुख की प्राप्ति हुई । कन्यासंक्रमण व्रतकथा पूर्ववत् संक्रमण के समान सब करे, मात्र इस व्रत को भाद्रपद में आने वाले कन्यासंक्रमण के अन्दर करे, व्रत, पूजन करे, पद्मप्रभ तीर्थ कर की पूजा जाप्य करे, कथा वगैरह पूर्ववत् करे । सिंहसंक्रमण व्रत कथा मकर की तरह इस व्रत की पूजा विधि करे, मात्र इसको श्रावण महिने में सिंहसंक्रमण आता है तब इस व्रत को करे, पूजा भी उसी प्रकार, जाप्य भी उसी प्रकार, सर्वविधि भी उसी प्रकार करे, आराधना सुमतिनाथ की करे, कथा पूर्ववत् समझे। कर्कसंक्रमण व्रत कथा मकर संक्रमण व्रत के समान ही इस व्रत की विधि करे, मात्र फरक इतना ही है कि आषाढ महिने में कर्कसंक्रमण आने पर इस व्रत को करे, बाकी सब विधि पूर्ववत् समझना, आराधना, अभिनंदन तीर्थंकर की करे, जाप्य भी उसी तरह करे, कथा भी वही पढ़े। मिथुनसंक्रमण व्रत कथा उसी प्रकार इस व्रत को भी करे, इस व्रत को ज्येष्ठ महिने के मिथुनसंक्रमण
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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