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व्रत कथा कोष
अर्थ : - कनकावली में आश्विन शुक्ला प्रतिपदा, पंचमी और दशमी तथा कार्तिक कृष्ण पक्ष में द्वितीया, षष्ठी और द्वादशी इस प्रकार छः उपवास करने चाहिए । इसी प्रकार सभो महीनों में कुल ७२ उपवास किये जाते हैं । यह बारह महीनों में किये जाने वाला कनकावली व्रत है । किसी भी महीने में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की उपर्युक्त तिथियों में छः उपवास करना सावधिक मासिक कनकावली व्रत है |
विवेचन : - यद्यपि कनकावली व्रत की विधि पहले बतायी जा चुकी है, परन्तु यहां पर इतनी विशेषता समझनी चाहिए कि आचार्य सिंहनन्दी ने श्रावण से प्रारम्भ न कर प्राश्विन मास से व्रतारम्भ करने का विधान किया है । प्राश्विन मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा, पंचमी और दशमी तथा कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की द्वितीया, षष्ठी और द्वादशी इस प्रकार छः उपवास किये जाते हैं । श्राचार्य के मतानुसार प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष की तीन तिथियां तथा प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की तीन तिथियां लेनी चाहिए । मास गणना अमावस्या से लेकर अमावस्या तक की जाती है । एक वर्ष में कुल ७२ उपवास करने पड़ते हैं । मासिक कनकावली में केवल छः उपवास किये जाते हैं । मास गणना श्रमान्त ली जाती है ।
व्रत के पूर्ण होने पर अन्त में उद्यापन करे ।
श्रथ करकुच व्रत कथा
व्रत विधि :- कार्तिक शुक्ला नवमी के दिन एकाशन करे, १० के दिन उपवास करे । पहले के समान सब विधि करे, पीठ के ऊपर पंचपरमेष्ठी मूर्ति स्थापित करे, पंचामृत अभिषेक करे ।
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जाप :- ॐ ह्रां ह्नह्व. ह्रौं ह्नः प्रहंत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यो
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नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र का १०८ बार पुष्पों का जाप करे । णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप करे । दूसरे दिन आहार आदि देकर पारणा करे ।
कथा
पहले उज्जयिनी नगरी में वीरसेन राजा अपनी विजया पटरानी के साथ