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________________ व्रत कथा कोष [ २०१ भावार्थ :-यह व्रत चार सौ पचासी दिन में पूरा होता है, जिसमें ४०५ उपवास और ८० पारणे होते हैं । यथा एक उपवास, एक पारणा, दो उपवास, एक पारणा, इस प्रकार : उपवास तक बढ़े फिर एक-एक उपवास कम करता हुमा १ तक आवे । इस प्रकार : बार बढ़ावे व घटावे । एक बार में ४५ उपवास और ६ पारणा होते हैं। कुल नौ प्रावृत्ति के ४०५ उपवास और ८० पारणा में व्रत पूर्ण होता है । नमस्कार मंत्र का त्रिकाल जाप्य करे । व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करे । एशोदश व्रत एशोदश व्रत छह सौ पचास, सौ जेवा साढ़े पांच सौ वास । दशलों चढ़े अनुक्रम सोय, जो लों व्रत पूरण नहिं होय ॥ -वर्धमान पु० भावार्थ :- यह व्रत ६५० दिन में पूरा होता है जिसमें ५५. उपवास और १०० पारणायें होती हैं । यथा जिस किसी मास में प्रारम्भ करे । प्रथम दिन एक उपवास, एक पारणा, फिर दो उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, इस प्रकार एक-एक उपवास बढ़ाकर १० उपवास तक बढ़ावे, फिर ६ उपवास, एक पारणा, ८ उपवास एक पारणा, इस प्रकार १-१ घटाकर एक तक आवे । इस प्रकार दश आवृत्ति में ५५० उपवास और १०० पारणा होकर व्रत पूर्ण हो जाता है। नमस्कार मन्त्र का त्रिकाल जाप्य करे । व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करे। कंजिक व्रत कंजिक व्रत जल भात प्राहार, चौंसठ दिन पाले निरधार । यथा शक्ति कछु और प्रतन्त, तितने मास बरष परयंत ॥ -व० पु० भावार्थ :-यह व्रत एक वर्ष के भीतर ६४ दिन में समाप्त होता है। किसी भी मास के प्रथम दिन से यह व्रत प्रारम्भ करे। चौंसठ दिन तक सिर्फ
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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