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________________ २०० ] व्रत कथा कोष होने वाले मुनि उपसर्ग का हाल कह सुनाया। सुनकर विक्रिय ऋद्धि का परीक्षण करके विष्णुकुमार मुनि हस्तिनापुर प्राये और अपना बावना रूप बनाकर चारों मन्त्रियों से तीन पांव भूमि से कल्पित करवाकर विक्रियाऋद्धि से अपना बहुत बड़ा शरीर बनाया और एक पांव मेरू पर्वत पर, दूसरा पांव मानुषोतर पर्वत पर रखा, अब कहने लगे तीसरे पाँव के लिए जगह दो । उसी समय देवों के पासन कम्पित हुए सर्व देवों ने आकर मुनिसंघ का उपसर्ग दूर किया और विष्णुकुमार मुनि से क्षमा मांगी और अपना रूप छोटा करने की प्रार्थना की। मुनि उपसर्ग दूर हुआ, चारों मन्त्री भी मिथ्यात्व छोड़कर जिनधर्मी बने । विष्णुकुमार मुनि उपसर्ग दूर कर अपने यथास्थान पहुंचकर घोर तपस्या करने लगे । कुछ ही दिनों में कर्म काटकर मोक्ष चले गये। इस प्रकार धर्म प्रभावना हुई । ऋषिपंचमी व्रत मास प्राषाढ़ शुक्ल की सोय, जहि पंचमी को दिन होय । व्रत के दिन छांडो प्रारम्भ, जिनवर भजो तजो सब दंभ ॥ पांच वर्ष अरु मासहि पंच, ये सब व्रत पैंसठ सुन संच । जब यह व्रत पूरो ह लोय, यथाशक्ति उद्यापन होय ।। भावार्थ :-यह व्रत ५ वर्ष और ५ महीने में समाप्त होता है। प्रति मास शुक्लपक्ष की पंचमी के दिन उपवास करे । नमस्कार मन्त्र का त्रिकाल जाप्य करे । आषाढ़ शुक्ला पंचमी से यह व्रत शुरू करे। ६५ उपवास पूर्ण होने पर उद्यापन करे। यह व्रत हस्तिनापुर में धनपति सेठ की पुत्री कमलश्री ने किया था जिसके प्रभाव से उसका बिछुड़ा हुआ पुत्र पुनः मिल गया था और अन्त में स्वर्ग-सुख प्राप्त हुए थे। एसोनव व्रत एसो नव व्रत दिन चार सै, ऊपर तहां पचासी लखे। चौशत पण प्रोषध जेवा उसी, इकर्ते नवलों चढ़ फिर घटी। -वर्धमान पुराण
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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