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व्रत कथा कोष
कार्तिक कृष्णपक्ष में द्वादशी तिथि को प्रोषधोपवास करना चाहिए । इस उपवास की नन्दीश्वर संज्ञा है। इसकी महिमा का वर्णन कोई नहीं कर सकता है । कार्तिक शुक्लपक्ष में तृतीया को चतुर्वर्ग को देने वाला सर्वार्थसिद्धि नामक उपवास किया जाता है । इस उपवास के करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं । कार्तिक शक्ल में एकादशी तिथि को प्रातिहार्य नामक उपवास किया जाता है, यह धर्मवद्धि को करने वाला होता है । मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष में एकादशी तिथि को सर्व सुखप्रद नामक उपवास किया जाता है । इसके प्रभाव का वर्णन कौन कर सकता है । अगहन सूदी ततोया को अनन्तविधि नाम का प्रोषधोपवास किया जाता है, यह अनन्त सुख का देने वाला होता है । इस प्रकार प्रत्येक वर्ष में भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक और मार्गशीर्ष इन चार महीनों में उपवास करने चाहिए । इस विधि से नौ वर्ष तक व्रत पालन कर उद्यापन करना चाहिए।
उपवास के दिन भगवान जिनेन्द्र का अभिषेक, पूजन करना चाहिए। इस प्रकार नौ वर्ष तक व्रत का पालन कर नौवें वर्ष उद्यापन कर देना चाहिए, ऐसा अनेक श्रेष्ठ प्राचार्यों ने उत्तम मुक्तावली वत के सम्बन्ध में कहा है।
विवेचन :-मुक्तावली व्रत को विधि पहले बतायो जा चुकी है। प्राचार्य ने यहां पर उत्तम मुक्तावली व्रत की विधि बतलायी है । उत्तम मुक्तावली व्रत भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक और अगहन इन चार महीनों में पूरा किया जाता है । भाद्रपद शक्ल पक्ष में सप्तमी का एकाशन और अष्टमी का उपवास, क्वार में कृष्ण पक्ष में षष्ठी और त्रयोदशी को और शुक्ल पक्ष में एकादशी को उपवास, कार्तिक में कृष्ण पक्ष में द्वादशी को और शुक्ल पक्ष में तृतीया और एकादशी को उपवास एवं अगहन में एकादशी को और शुक्लपक्ष में तृतीया को उपवास किया जाता है । इस व्रत में कृष्णपक्ष में उपवास के दिनों में पञ्चामृत अभिषेक करने का विधान है। व्रत के दिनों में चतुर्विशति जिनपूजा की जाती है । रात जागरण पूर्वक बितायी जाती है। शील व्रत भाद्रपद से प्रारम्भ कर अगहन तक पाला जाता है।
इस व्रत में "ॐ ह्रीं सिद्धपरमेष्ठिभ्यो नमः” मन्त्र का जाप प्रतिदिन उपवास के दिन तीन बार, शेष दिन एक बार एक एक माला अर्थात् १०८ बार जाप करना