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________________ व्रत कथा कोष [ १९३ चाहिए । चारों महीनों में इसी का पालन किया जाता है तथा भोजन हरी, नमक उपवास के दिन गृहारम्भ का बिल्कुल त्याग दिन भगवान के अभिषेक के अनन्तर दीनउपरान्त भोजन करना होता है । भोजन कोई रस छोड़कर किया जाता है। करना आवश्यक होता है । पारणा के दुःखी व्यक्तियों को प्रहार कराने के में प्रायः माड़-भात लेने का विधान है । कथा इसकी कथा मुक्तावलि कथा ही है उसको पढ़ े । श्रथ उपशांतकषाय गुरणस्थान व्रतकथा व्रत विधि :- - पहले के समान सब विधि करे । अन्तर केवल इतना है कि ८ के दिन एकाशन करे । नवमी के दिन उपवास करे । पूजा आदि पहले के समान करे । मुनिको प्रहार दे । ११ दम्पति को भोजन करावे । वस्त्र आदि दान करे । १०८ कमल पुष्प, १०८ आम्रफल चढ़ावे । १०८ चैत्यालय की वन्दना करे । कथा पहले शिवमदीरपुर नगरी में शिवसेन राजा अपनी महारानी शिवमती के साथ रहता था । उसका पुत्र शिवकोन उसकी स्त्री शिवगामी और शिवसंयोग मंत्री उसको स्त्री शिवशोला पुरोहित सारा परिवार सुख से रहता था । एक बार उन्होंने शिवगुप्ताचार्य मुनि से व्रत लिया और उसका व्रतविधि से पालन किया । सर्वसुख को प्राप्त किया। अनुक्रम से मोक्ष गए । श्रथ उपभोगांतरायनिवारण व्रत कथा व्रत विधि :- पहले के समान सब विधि करे अन्तर केवल इतना है कि ज्येष्ठ कृ. ११ के दिन एकाशन करे, १२ के दिन उपवास करे, पूजा वगैरह पहले के समान करे, णमोकार मन्त्र का जाप १०८ बार करे, चार दम्पति को भोजन करावे । वस्त्र आदि दान करे । कथा पहले सिंधपुर नगरी में सिंधसेन राजा सिंधुदेवी अपनी महारानी के साथ रहते थे । उसका पुत्र सिंधुसेन, उसकी स्त्री सिंधुमति मन्त्री उसकी स्त्री सिंधुमुखी और
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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