SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्रत कथा कोष प्राश्विनै मेचके पक्षे षष्ट्यां सूर्यप्रभो भवेत् । चन्द्रप्रभस्त्रयोदश्यामेष चन्द्रप्रभस्तथा ॥१॥ प्राश्विन शुक्लैकादश्यां कुर्याद् दुष्कर्महानये । कुमारसंभवो नामोपवासः शुभदो भवेत् ॥ २ ॥ कार्तिके श्यामले पक्षे द्वादश्यां प्रोषधो भवेत् । नाम्नः नन्दीश्वरस्तस्य माहात्म्यं केन वरिणतम् । कात्तिके धवले पक्षे तृतीयादिवसे मतः । सर्वार्थसिद्धिकं नाम चतुर्वर्ग प्रसाधनम् ॥ कात्तिके धवले पक्षे लक्ष्यश्चैकादशीदिने । प्रातिहार्यविधिर्नाम कथितं धर्मवृद्धये ॥ एकादश्यां तु मार्गस्य मेचकेऽतिशुभप्रदे । सर्वसुखप्रदं नाम प्रभावः केन वर्ण्यते ॥ प्राग्रहायण शुक्ले तृतीयः प्रोषधः शुभः । अनन्त विधिरित्युक्तमनन्त सुख साधनम् ।। एवं चतुर्षु मासेषु, उपवासाः प्रकीर्तिताः । प्रत्यब्दं ते विधातव्या नवाब्दमिति साधुभिः ॥ [ १६१ उपवास दिने जिनेन्द्रस्नपने पूजनं कार्यम्, नवमवर्षे व्रतोद्यापनं करणीयम् । इति उत्तममुक्तावलीव्रतं भूरिसाधुभिः निगदितम् । अर्थ :- उत्तम मुक्तावली व्रत की विधि को कहते हैं, यह व्रत तृतीय भव में मोक्ष देने वाला है । इस व्रत का प्रारम्भ भाद्रपद शुक्ला सप्तमी को होता है । सप्तमी को एकाशन कर भाद्रपद शुक्ला भ्रष्टमी को उपवास करना चाहिए, पश्चात् आश्विन वदी षष्ठी को सूर्यप्रभ नाम का उपवास तथा प्राश्विन वदी त्रयोदशी को चन्द्रप्रभ नाम का उपवास करना चाहिए । प्राश्विन शुक्ल पक्ष में दुष्कर्मों के क्षय करने के लिए एकादशी तिथि को कुमारसंभव नाम का उपवास करना चाहिए । यह उपवास सब प्रकार से शुभ करने वाला होता है ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy