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का उदाहरण देख लीजिए श्रेष्ठी परिवार ने रविब्रत की निन्दा की धन के अहंकार में तब उनको क्या-क्या कष्ट भोगने पड़े।
ध्यान रखिए, अवश्य ध्यान रखिए व्रत की निन्दा मत करिये । आगमानुसार और जैसी व्रत की विधि हो पैसा करना चाहिए। हीनाधिक करने से फल में भी हीनाधिकता हो जाती है विश्वास रखकर भाव शुद्धि पूर्वक क्रिया करे, क्रिया तभी फलदायी हो सकती है अन्यथा नहीं।
इस प्रकार यह व्रत कथा कोष का मैंने संग्रह किया है, अनुवाद किया है, मैंने अपनी तरफ से इसमें कुछ भी नहीं लिखा है। जानकार शुद्धकर के पढ़े। मुझे क्षमा करे मैं तो एक छद्मस्थ जीव हूं मुझ में इतना ज्ञान कहां ?
उपयोग की स्थिरता के लिए कुछ न कुछ लिखने का अभ्यास पड़ गया है इसलिए स्वयं के लाभार्थ कुछ न कुछ लिखता रहता हूँ। आप सब भो अवश्य ही लाभान्वित होइये तभी मेरा श्रम सार्थक होगा।
इस संग्रह में हमारे शिष्य बालाचार्य पद्मनंदी जी व हमारी शिष्या आर्यिका करूणा श्री माताजी ने बहुत सहायता की है उसके लिए उनको मेरा बहुत-बहुत आशीर्वाद है।
जो भी मैने अाज तक लिखा संग्रह किया अनवाद किया या टीकायें लिखी उन सबका कुछ न कुछ किसी के नाम पर ही किया है । जैसे विमल टीका, विजया टीका, सन्मति टीका, आदि आदि । इसी प्रकार इस संग्रह के अनुवाद का नाम पद्माम्बानुवाद रखा है । मैं अपने नाम से कुछ नहीं करना चाहता हूं।
इस व्रत कथा कोष के संग्रह करने में मैंने व्रत कथा कोष सूरत, व्रत तिथि निर्णय ज्ञान पीठ, जिनेन्द्र व्रत कथा संग्रह सोलापुर, अज्ञात आदि का मैंने सहयोग लिया है। इन सबका मैं आभारी हूं और संग्रह कर्ताओं को मेरा आशीर्वाद है।
व्रत कथा कोष के प्रकाशन खर्च में जिन-जिन दातारों ने सहयोग किया है उन सभी को मेरा शुभाशीर्वाद है। -
हमारी ग्रंथमाला के कर्मठ कार्यकर्ता प्रकाशन संयोजक श्री शान्ति कुमारजी गंगवाल है जो कठिन परिश्रमी होने के साथ-साथ सच्चे पुरुषार्थी है इनके सुपुत्र प्रदीप कमारजी भी आप जैसे ही है। इन्हीं के विशेष सहयोग से यह ग्रंथमाला निरन्तर उन्नति की ओर अग्रसर है और अब तक 16 महत्वपूर्ण ग्रंथो का प्रकाशन हो चुका है और यह ग्रंथ सत्रहवें पुष्प के रूप में प्रकाशित हुआ है। अतः श्री शांति कुमारजी प्रदीप कुमार जी गंगवाल व ग्रंथमाला के सभी कार्यकत्ताओं को मेरा बहुत-बहुत मंगलमय शुभाशीर्वाद है।
गणधराचार्य कुथुसागर