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________________ व्रत कथा कोष [१७१ हो गया। फिर उसने अपनी कन्या का विवाह विधिपूर्वक उसके साथ कर दिया। बहुत समय तब वह भी वहीं रहा फिर वह अपने जाने के समय चित्तौड़गढ़ पाया। वहां लुटेरों ने उसका सब धन छीन लिया और उस पिंगल को मार डाला । तब वह विशाला चित्तौड़गढ़ शहर में गई। वहां जिन मन्दिर में गई और भगवान के दर्शन किये । वहां मुनिश्वर बैठे हुए थे, उनकी वन्दना आदि करके पास में बैठकर अपनी सब बातें उन्हें बतायी और दुःखी होकर कहा कि अब मैं क्या करू और कहां जाऊँ ? तब महाराज जी ने समझाया कि हमारे किये गये कर्म हमें भोगे बिना छटते नहीं हैं । पूर्व जन्म में तुमने जो पाप किये हैं, उनका फल भोग रही है । उसका वर्णन करता हूं, सुनो : पहले एक जन्म में तुम इसी शहर में वारांगना (वेश्या) थी। तुम स्वरूप से बहुत सुन्दर होने से नृत्य करने में अतिशय कुशल थी । एक दिन सोमदत्त नामक मुनि यहां आये, जिससे श्रावकों को बहुत आनन्द हुआ। रोज उत्सव होने लगे। राजा के हाथी पर जिनवाणी रखकर जुलूस के साथ जिन मन्दिर में लाये । वे मुनिराज शास्त्र पढकर रोज धर्मोपदेश देते थे। लोग बड़े उत्साह से सुनते थे। यह सब देखकर ब्राह्मण लोग द्वष करने लगे । उन्होंने मुनि से बड़ा वाद-विवाद किया, जिसमें मुनिश्वर जीत गये । यह देख श्रावकों को बहुत खुशी हुई। पर ब्राह्मणों के मन में द्वष बढ़ने लगा। तब मुनि के साथ छल करने का दूसरा उपाय किया । तेरा जीव उस समय वेश्या स्वरूप में था । ब्राह्मणों ने एक वेश्या बुलायी, वह तू ही थी, तुझसे उन्होंने कहा कि यदि तू उस साधु का ब्रह्मचर्य भ्रष्ट करेगी, तो तुझे बहुत धन दिया जायेगा । तब तू धन के लोभ से एक श्राविका का शृंगार करके रात को अकेली मन्दिर में जाने लगी और मुनि को मोहित करने के लिये अनेक प्रयत्न करने लगी । अन्त में मुनि का आलिंगन भी किया पर मुनि तो अपने ध्यान से नहीं डिगे । मेरुपर्वत के समान निश्चल बैठे थे । तब तू निरुपाय हो, लज्जित हुई । तुझे बहुत आश्चर्य हुआ। तू सोचने लगी कि एक दृष्टि उठा कर देख लेने पर प्रादमी मेरे पीछे लग जाता है पर इस मुनि ने आँख उठाकर भी नहीं देखा । यह कैसा प्राश्चर्य है । धन्य है यह योगी। शाबास ! उसके जितेन्द्रिय को। इस प्रकार से मन में सोचकर वह वापस ब्राह्मण के
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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