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व्रत कथा कोष
चौबीस तीर्थंकरों की आराधना करे । इस प्रकार प्रत्येक पहर में स्तवन और अर्चना करे । इस प्रकार चार बार करे । अंत में
"ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रीं वृषभादि चतुविंशति तीर्थ करेभ्यो यक्ष पक्षी सहितेभ्यो नमः स्वाहा "
इस मन्त्र का १०८ बार जाप करे । णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप करे । यह कथा पढ़ े । महार्घ्य दे, प्रारतो करे । दूसरे दिन पूजा व दान करके पारणा करे |
इस प्रकार से ५ वर्ष यह व्रत करके उद्यापन करें । उस समय चौबीस तीर्थंकर विधान करके महाभिषेक करे । चार प्रकार का दान दे । मन्दिर में ५ घण्टे, दर्पण, छत्र, चमर आदि दे ।
कथा
इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में सौष्ठ नामक देश है । उसमें तिलकपुर नामक मनोहर नगर है । वहां पर महिपाल राजा राज्य करता था । उसकी रानी विचक्षणा थी । वहां पर भद्रशहा नामक व्यापारी नंदा नामक स्त्री के साथ रहता था । उसकी विशाला नामक एक कन्या थी । वह रूपवती व गुणवती थी । पर बाद में उसके प्रोंठ पर कोढ़ हो गया जिससे उसके साथ कोई भी शादी नहीं करता था । उसके माता-पिता को भी दुःख था ।
एक दिन उसके माता- -पिता ने उससे कहा कि हे बाले ! हमने पूर्व भव में कुछ पड़ रहा है इसलिए अब धर्म कार्य
ऐसे कार्य किये होंगे जिससे हमें उसका फल भोगना की ओर अपना ध्यान दो, जिससे अपना दु:ख नष्ट होगा । यह सुन वह नित्यपूजा, स्तुति, वन्दना, मन्त्रजाप्य, दान श्रादि शुभ भावना से करने लगी । व्रत भी करती थी, जिसके पुण्य के प्रभाव से एक दिन पिंगल नामक वैद्य ने उसके पिताजी से पूछा कि तुम्हारी लड़की का रोग ठीक होने पर लड़की मुझे दोगे क्या ? तब उसके पिता ने कहा दे दूंगा ।
वैद्य ने सिद्धचक्र की पूजन करके औषधि दे दी। जिससे उसका रोग प्रच्छा